किसी के लख़्ते जिगर का टुकड़ा जब दुखी होता है
यह सच है कि उसकी माँ का दिल भी रोता है
संभाला कोख में अपनी फिर पाला पोसा
बड़ा हुआ तो जवानी में घर बसाया उसका
लाई वो ज़न्नत से परी अपने लख़्ते जिगर के लिए
पर खुद महरूम रह गई उसकी प्यार की नज़र के लिए
जब वो थका मांदा घर लौटता चौखट पे माँ होती
हर एक उसकी सदा पे वो अपनी जां लुटा देती
पर उसने कब माँ के अरमानों का मोल चुकाया
बीमार बूढ़ी होने पर उसे वृद्धाश्रम छोड़ आया
तिल तिल उसे याद करते करते उसकी याद में वो मर गई
मरते मरते भी सारी जायदाद उसको वसीयत कर गई
यही है उस माँ की ममता की कहानी
जिसे सुनकर भर आता आँखों में पानी
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