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गुरुवार, 3 मार्च 2016

माँ की ममता



किसी के लख़्ते जिगर का टुकड़ा जब दुखी होता है 
यह सच है कि उसकी माँ का दिल भी रोता है 

                संभाला कोख में अपनी फिर पाला पोसा 
                बड़ा हुआ तो जवानी में घर बसाया उसका 

लाई  वो ज़न्नत से परी  अपने लख़्ते जिगर के लिए 
पर खुद महरूम रह गई उसकी प्यार की नज़र के लिए 

               जब वो थका मांदा घर लौटता चौखट पे माँ होती 
               हर एक उसकी सदा पे वो अपनी जां लुटा देती 

पर उसने कब माँ के अरमानों का मोल चुकाया 
बीमार बूढ़ी होने पर उसे वृद्धाश्रम छोड़ आया 

                तिल तिल उसे याद करते करते उसकी याद में वो मर गई 
                मरते मरते भी सारी जायदाद उसको वसीयत कर गई 

यही है उस माँ की ममता की कहानी 
जिसे सुनकर भर आता आँखों में पानी  

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