नदिया गहरी नाव बीच मंझधार
बिन मांझी कैसे उतरूँ उस पार
ओ सपनों के मीत मेरे
गाऊं कैसे गीत मै तेरे
टूटे मन वीणा के तार
दूर कहीं जब कोयल बोले
सुनके कुहुक मेरा मन डोले
पपीहा पीहू पीहू छेड़े मल्हार
मंजिल मेरी कितनी अपार
कितने घातक होते प्रहार
टूटे सपनों के अखिल हार
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