कितनी बार मिले तुम मुझसे
कितनी बार मै तुम तक आई
बन गई मै खुद अपनी बैरन
दिल की बात नहीं कह पाई
आई फिर वो शाम सिन्दूरी
बात रह गई मेरी अधूरी
सुधियों के बादल भी छाये
तुम तक बात पहुँच न पाई
संध्या ने आँचल फैलाया
देखो चाँद निकल भी आया
चम्पा चमेली की सुरभि ने
मन की ये बगिया महकाई
भंवरा फ़ूलों पर मंडराए
तितली रस पी झूमे गाये
पापी पपीहा शोर मचाये
मन ही मन मै क्यों अकुलाई
@मीना गुलियानी
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