यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 7 मार्च 2016

उस पार मैने देखा था



कैसे भुला पाऊँगी वो मन्ज़र उस पार जो मैने देखा था 

                    तेरा मदभरा हास्य चेहरे पे खिला लास्य 
                    कामदेव शर्मा जाए वो रूप तुम्हारा देखा था 

सीने पे बिखरे गेसू और उसमे छुपा तेरा चेहरा 
मदहोश कर देने वाला वो रूप तुम्हारा देखा था  

                   होठों को बन्द करके जो तुमने कहा वो मैने सुना 
                   उस बंद खामोशी में भी तो तूफ़ान उमड़ते देखा था 

तेरी पलकें भी झुकी रहीं मेरी साँसे भी रुकी रहीं 
तेरी उस सूनी चितवन से सैलाब पिघलते देखा था 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें