कैसे भुला पाऊँगी वो मन्ज़र उस पार जो मैने देखा था
तेरा मदभरा हास्य चेहरे पे खिला लास्य
कामदेव शर्मा जाए वो रूप तुम्हारा देखा था
सीने पे बिखरे गेसू और उसमे छुपा तेरा चेहरा
मदहोश कर देने वाला वो रूप तुम्हारा देखा था
होठों को बन्द करके जो तुमने कहा वो मैने सुना
उस बंद खामोशी में भी तो तूफ़ान उमड़ते देखा था
तेरी पलकें भी झुकी रहीं मेरी साँसे भी रुकी रहीं
तेरी उस सूनी चितवन से सैलाब पिघलते देखा था
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