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गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

हमें मुस्कुराना चाहिए

जीवन एक सौगात है जीना आना चाहिए
कैसे भी पल आएँ हमें मुस्कुराना चाहिए

चाहे दिल पर बोझ हो कितना भी भारी
भूलकर सारे गम को हँसना आना चाहिए

चाहे आशा इस जीवन में बन जाए निराशा
विगत सुखद पलों को न बिसराना चाहिए

जीवन की रणभूमि में चाहे जीत या हार मिले
हर घड़ी परीक्षा की है समझ में आना चाहिए
@मीना गुलियानी

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

कण कण में स्पंदन है

तू ही मेरे दिल में बसा है
तुझसे ही जग रोशन है
रोम रोम तेरा नाम पुकारे
तू ही अंतर्मन में है

तुझसे ही संगीत है मेरा
तू ही मेरी सरगम है
सांसो की वीणा में है तू
तू  ही दिल की धड़कन है

मन की भावना में बसा तू
लहरों में तेरा गान बसा
अस्ताचल की किरणों में तू
तू ही मेरा दर्पण है

मन उपवन का फूल है तू
तुझसे ही ये संसार बसा
हर पल तू नज़रों में समाया
कण कण में स्पंदन है
@मीना गुलियानी 

हँसना सिखा दिया है

जब दर्द उठा तो रो दिए हम
वरना हँसते हुए जीवन जिया है

यकीं है तुझे पा ही लेंगे एक दिन
तेरी खुशबु ने पता बता दिया है

तेरी याद में जिंदगी गुज़ार लेंगे हम
तेरी चाहत ने सुकूँ मुझे बहुत दिया है

अच्छा होता गर तुम साथ रह पाते
वक्त से पहले  दामन छुड़ा लिया है

क्या कयामत ढा गई तेरी वफ़ा भी
रोते रोते भी हँसना सिखा दिया है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 9 दिसंबर 2017

जो पिया का संदेशा लाए

मुंडेर पे काला कौआ बैठा काँव काँव चिल्लाए
सुनके उसकी काँव काँव को दिल मेरा हुलसाए

शायद आज कोई संदेशा पिया के गाँव से आए
दिल में  फिर से हूक उठी सौ सौ तूफ़ान उठाए

करने फिर सिंगार को बैठी दिल में प्रेम जगाए
पिया बिना कछु सूझे नाहीं मन मोरा बौराए

माथे  कुमकुम टीका बिछिया पायल भी इतराए
कर  सौलह सिंगार सजी मैं पिया की आस लगाए

बार बार उठ द्वार पे जाऊँ नैनन टकटकी लगाए
करूँ मनुहार पवन की जो पिया का संदेशा लाए
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

दीप जला जाना

इस दिल ने उठाये लाखों सितम
तुम और सितम अब मत ढाना

तड़पा है किसी की याद में ये
तुम इसको याद नहीं आना

चाहे सुबह ढले चाहे शाम ढले
नाम जुबां पे हमारा मत लाना

खुश रहना  हर हाल में तुम
अश्कों को न अपने ढलकाना

दिल तुमको दुआएँ देता है
ख़ुशी  के दीप जला जाना
@मीना गुलियानी


तुम बिन रहा नहीं जाता

आज फिर दिल ने तुमको पुकारा
तुमने पलटकर न देखा दुबारा

 क्यों इतनी कड़वाहट रिश्तों में घुली
खुदा जाने क्यों ये सज़ा मुझे मिली

वो पल हसीन थे जब हम मिले थे
दिल में उमंगों के फूल खिले थे

अब वो सारे गुल मुरझाने लगे हैं
तेरी विरह में आँसू बहाने लगे हैं

कलियों का तड़पना देखा नहीं जाता
आ जाओ तुम बिन रहा नहीं जाता
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

समीकरण में उलझा रहता है

जिंदगी की समस्या क्या कभी खत्म होगी
समुद्र की लहरों सी मचलती रहती हैं
इनका क्षेत्र कितना विस्तृत है
अनवरत सी चलती रहती हैं
कभी कभी तो ज्वारभाटा
और कभी ज्वालामुखी बन
नागिन सी फुँफकारती हैं
कभी गर्मी की तपिश तो
कभी सर्दी का तीक्ष्ण रूप लेती हैं
जीवन अस्त व्यस्त कर  देती है
कोई बेघर, बेचारा, भूख का मारा
सड़कों के फुटपाथ पर ठिठुरता है
अलाव जलाकर सर्दी कम करता है
बिना वस्त्रों के रात गुज़ारता है
तो कभी भूखे पेट सोता है
उनकी हालत बहुत खस्ता होती है
जिसे देखो समस्याग्रस्त नज़र आता है
क्या समस्या से बचने का कोई रास्ता है
मेरा मन इसी समीकरण में उलझा रहता है
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

टूट के बिखर जाएँ हम

तुम्हीं बताओ कैसे जिया जाएगा सनम
इक तरफ जहाँ है और इक तरफ सनम
ऐसे तो घबरा के टूट ही जायेंगे हम
दिल मेरा कहाँ है और तू कहाँ सनम

बीच भंवर में डूबती ही जा रही थी नाव
आये तुम तो डूबते हुए को लिया थाम
लड़खड़ा रहे हैं कदम गिर न जायें हम
आओ तुम्हें पुकारते हैं थाम लो सनम

राहते जा बनके आ गए जिंदगी में तुम
मुस्कुरा दी जिंदगी भी मिल गए जो तुम
अब तो ज़िद अपनी छोड़ो तुमको है कसम
ऐसा न हो कि टूट के बिखर जाएँ हम
@मीना गुलियानी

सोमवार, 4 दिसंबर 2017

तेरे आने से बढ़ जाती है

तारों की छाँव में हर एक रात गुज़र जाती है
 दिल को समझाने तेरी याद चली आती है

हम ख्यालों में तुमको ही बुला लेते हैं
जब शबे ग़म की तन्हाई तड़पाती है

जाने क्यों कौंधती है बिजली घटाओं में
हिचकियाँ देके मुझे पवन चली जाती है

जब घटा झूमके आँगन में बरस जाती है
दिल की धड़कन तेरे आने से बढ़ जाती है
@मीना गुलियानी


रविवार, 3 दिसंबर 2017

दिल ही में सिमट जाएंगी

आईना देखके जब याद मेरी आएगी
साथ गुज़री मुलाक़ात याद दिलाएगी

जब यादें भावनाओं का ज्वार उठायेंगी
तुम्हीं बताओ वो शाम कैसे गुज़र पायेगी

आँखों आँखों में ही कह देंगे सारी बातें
 रात तारों की छाँव में ही कट जायेगी

सारी कटुता भूलकर दूरी मिट जायेगी
सब ख़्वाहिशें दिल ही में सिमट जाएंगी
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 30 नवंबर 2017

समेटकर ले आती है

इक मुलाकात में सारी उम्र चली जाती है
आंसू के कण में सृष्टि सिमट जाती है

अंतर्मन में मीठे पानी की लहर आती है
जिसमें सूने मन की रेत भीग जाती है

मन की माला कोमल किसलयी हो जाती है
 मलयानिल सुगंध अपनी लुटा जाती है

खुशियों की सीपियाँ जो जिंदगी चुराती है
फ़ुरक़त के पलों मेँ समेटकर ले आती है
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 28 नवंबर 2017

स्मृतियों का अवशेष हैं मेरे सपने

मेरे सपने मेरी आँखों में लहलहाते हैं
होठों पे थरथराते हैं बिन कहे रह जाते हैं
मेरे सपनों में इंद्रधनुष रंग भरता है
बादल भी कूची सा बन बिखरता है
मैं फूलों से रंग बिरंगे रंग चुनती हूँ
उनसे सपनों का ताना बाना बुनती हूँ
कभी चम्पा चमेली जूही का फूल मैं
बनाती हूँ ,उन्हें देख देख हर्षाती हूँ
मलयानिल के झोंके सुगंध भरते हैं
हरी दूब का बिछौना बनता है मेरा
मेरे सपनों में प्रकृति का है पहरा
धरा से आकाश तक हिंडोला मेरा
चन्द्रमा की किरणें आके झुलाती हैं
शीतल बयार लोरी मुझे सुनाती है
तारों की चूनर चन्द्रमा का टीका
पहन इठलाती हूँ झूम जाती हूँ
जुगनू  उजाला करते हैं राहों में
कभी जलते बुझते हैं वीरानों में
मेरे सपने उफनती नदी समान हैं
जिसका कोई गंतव्य ही नहीं है
कोई सीमा नहीं कोई बंधन नहीं है
अपनी ही तान अपनी वृति और
अपने ही रस में लीन हैं अनन्त हैं
मेरे सपनों में एकांत की अनुभूति है
यथार्थ के सत्य की पीड़ा भी है
मेरा मन मानसरोवर समान है
मुझे संवेदना द्वारा मुझसे जोड़ता है
मेरी स्मृतियों का अवशेष हैं मेरे सपने
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 27 नवंबर 2017

क्या यही हूँ मैं

मैं अपनी जिंदगी की किताब
खोलता हूँ , पन्ना पलटता हूँ
घटनाएँ अनगिनत रंग में रंगती  हैं
बारिश की बूँद दूब पर मुस्काती है
मेरी तन्हाइयों की यादें गुनगुनाती हैं
तब मेरे आँसू पिघल जाते हैं और
मेरे अंतर के भय बिखर जाते हैं
मेरी अंगुलियाँ रेत पर थिरकती हैं
मैं अपनी तस्वीर को उकेरता हूँ
सुख की , दुःख की  परछाईयाँ
उभरती हैं , मेरे जीवन में तब
अनायास ही बसंत खिल उठता है
नए नए फूल उग आते हैं
अनन्त का झरना प्रवाहित होता है
जिससे मेरा तन मन रोमांचित होता है
मैं उसमे खो सा जाता हूँ
जिंदगी की किताब को देखता हूँ
पढ़ता हूँ , जीता हूँ, खुश होता हूँ
सोचता हूँ , क्या यही हूँ मैं ?
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 25 नवंबर 2017

सुर बन गुनगुनाते हैं

कुछ रिश्ते अनायास ही जुड़ जाते हैं
अनबूझ पहेली सी वो बन जाते हैं

न किसी परम्परा को वो मानते हैं
न कोई भेदभाव वो पहचानते हैं

बिन बोले ही दिल में  बस जाते हैं
दिल में नई प्रेरणा को जगाते हैं

विश्वास की इक डोर से बँध जाते हैं
अन्जान पर  दिल में रम जाते हैं

होठों की  मुस्कुराहट बन जाते हैं
नभ में बादल बन बरस जाते हैं

कागज़ की कश्ती बन तैरते हैं
अनमोल सुर बन गुनगुनाते हैं
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

याद हमको आने लगे हैं

वो रह रह के याद हमको आने लगे हैं
जिनको भुलाने में ज़माने लगे हैं

कभी कह न पाए जिन्हें दिल की बातें
वो बातें सभी को हम बताने लगे हैं

कहीं टूट जाए न हसरत भरा दिल
इस दिल को हम बहलाने लगे हैं

देखो चुभ न जाएँ कहीं तुमको काँटे
दामन अपना हमसे छुड़ाने लगे हैं

बहुत जी लिए हम घुट घुटके अब तक
नाकामियों पे पर्दे हम गिराने लगे हैं
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 22 नवंबर 2017

कटु सत्य है, यथार्थ है

समय बचपन से मेरा सहचर रहा है
मेरे बचपन की क्रीड़ा का
यौवन के सुख दुःख के क्षणों का
समय साक्षी रहा है
समय अनुभूति का विषय है
रीति , नीति , प्रीति का
समय में संवेग है , संकल्प है
यह गतिशील , परिवर्तनशील है
सभी नक्षत्र इसके आधीन हैं
दिन, रात , सूर्य , चन्द्रमा ,तारे
सब समयानुसार कार्य करते हैं
पत्ते पर पड़ी ओस की बूँद है
जो उगते सूर्य को समर्पित है
यह शतरंज की बिसात है
यही शह और मात है
समय उन्नति का मार्ग है
यह एक अनवरत सीढी है
धरा को गगन से मिलाने के लिए
समय नश्वर और अनश्वर है
समय चेतना और अचेतना है
यही आस्था , भक्ति और विरक्ति है
समय ही गति , नियति , प्रगति है
समय की धारा बहुत प्रबल है
बड़े बड़े राजा महाराजा इसके आगे
नतमस्तक हो जाते हैं
कब, कौन, कैसे, कोई घटना घटित होगी
यह सिर्फ समय ही जानता है
हर युग का इतिहास केवल
समय के ही पास है
हम सब समय के आधीन हैं
यही कटु सत्य है, यथार्थ है
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 20 नवंबर 2017

कोशिश कर रहा हूँ मैं

तेरे साथ मेरे हमदम हमेशा रहा हूँ मैं
मुझे जिस तरह से चाहा वैसा रहा हूँ मैं

तेरे सर पे धूप आई तो मैं पेड़ बन गया
तेरी जिंदगी में कोई वजह रहा हूँ मैं

मेरे दिल पे हाथ रखके बेबसी को समझो
मैं इधर से बना तो उधर ढह रहा हूँ मैं

तू आगे बढ़ गई तो यहीं पे रुक गया
तू सागर बनी कतरा बन रहा हूँ मैं

चट्टानों पे चढ़ा तो पाँव की छाप रह गई 
किन रास्तों से तेरे साथ गुज़र रहा हूँ मैं

ग़म से निज़ात पाने की सूरत नहीं रही
 निजात पाने की कोशिश कर रहा हूँ मैं
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

हमपे इनायत नहीं रही

हमने अकेले सफर किया है तमाम उम्र
किसी मेहरबां की हमपे इनायत नहीं रही

कुछ दोस्तों से हम भी मरासिम नहीं रहे
कुछ दुश्मनों से हमारी अदावत नहीं रही

तकल्लुफ़ से कुछ कहें तो बुरा मानते हैं
रो रो के बात करने की आदत नहीं रही 

सीने में जिंदगी अभी सलामत है मगर
इस जिंदगी की कोई ज़रूरत नहीं रही

कितनी मशालें लेके चले थे सफर पे हम
जो रौशनी थी वो भी सलामत नहीं रही

खण्डहर बचे हुए हैं इमारत कोई नहीं रही
अब तो हमारे सर पे कोई छत नहीं रही
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 15 नवंबर 2017

याद आया वो गुज़रा ज़माना

वो चिलमन उठाके तेरा मुस्कुराना
वो पलकें उठाना उठाके गिराना
खिलखिलाती हँसी होंठों में दबाना
तितली सी उड़ती फिरना इतराना

वो पहरों तेरा छुपके आँसू बहाना
तेरा यूँ मचलना बहाने बनाना
हथेली में अपने मुँह को छिपाना
कभी छुपके रोना कभी गुनगुनाना

वो तारों की छाँव में छिपना छिपाना
चेहरे को अपने पल्लू में छिपाना
आँखों से अपने बिजली को गिराना
पाँव में  पायल की रुनझुन बजाना

वो शाखों से लिपटकर बल खाना
जुगनू सी दमकना सिमट जाना
यादों की भूल भुलैया में खो जाना
मुझे याद आया वो गुज़रा ज़माना
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 14 नवंबर 2017

बनाने में जमाने लगे हैं

वो नज़रें हमसे ही चुराने लगे हैं
जिनको मिलाने में जमाने लगे हैं

किसी ने पाई हर ख़ुशी इस जहाँ में
हमें जिसको पाने में जमाने लगे हैं

अमावस की रातें  कटें एक पल में
कभी पल बिताने में जमाने लगे हैं

  खोजा जिसे वो मंजिल थी सामने
हमें  उसको पाने में जमाने लगे हैं

न टूटे कभी भी दिल के ये रिश्ते
इनको बनाने में जमाने लगे हैं
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 13 नवंबर 2017

मेरे मन को हर्षाए

दूर अस्ताचल में सूरज ढल गया है
साँझ की बेला में फूल झरने लगे हैं
पक्षी घोंसलों में लौटने लगे हैं
उनका कलरव मन को लुभाता है
उनका चहचहाना चौंच से चुगना
दायें  बायें घूमना बच्चों को खिलाना
शीतल बयार में पंख फैलाये उड़ना
पानी में डुबकी लगाना इठलाना
सब देखना मन प्रमुदित करता है
मेरा मन भी चाहता है कि काश
मुझको भी गर पंख मिले होते
तो गगन के तारों को छू लेती
चन्द्रमा की किरणों से खेलती
व्योम की सहचरी बन कभी नभ
तो कभी धरा पर विचरती फिरती
मेरी उमंगों को भी पंख लगते
दुनिया के ग़म से विलग होते
केवल सुख का ही तब नाम होता
दुःख का न फिर हमें पता होता
चन्द्रमा का टीका माँग में सजाती
तारों की पायल पहन नृत्य करती
तुम वीणा से ताल को मिलाते
सब पक्षी वृन्द ढोल को बजाते
हिरण कुलांचे भरता हुआ आता
अपनी मस्त चाल पर वो इतराता
मोर मयूरी को रिझाता पंख फैलाए 
यह सब दृश्य मेरे मन को हर्षाए
@मीना गुलियानी

रविवार, 12 नवंबर 2017

ऐसी कोई व्यवस्था बना दो

आज डोलने लगे धरा भी
ऐसी तुम हुंकार लगा दो
धरती से अंबर सब डोले
अलख का नारा लगा दो

जाग उठे सारी ये जनता
सोये इनके भाग्य जगा दो
खोया सब विश्वास ये पाएं
ऐसा कुछ करके दिखला दो

हर नारी सम्मान को पाए
ऐसी जागृति देश में ला दो
सबकी मर्यादा रहे सुरक्षित
सुप्त संस्कारों को जगा दो

देश में  सब खुशहाल रहें
 शान्ति का मार्ग दिखा दो
सबकी हर पीड़ा मिट जाए
ऐसा प्रेम का दीप जला दो

कोई रहे न भूखा प्यासा
अन्न  समस्या सुलझा दो
हर कोई सुख से सो जाए
ऐसी कोई व्यवस्था बना दो
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

संवेदना दिल में जगाएं

विरक्त मेरा मन हो चला
देखकर  संसार की वृत्तियाँ 
 कुत्सित भावना छल प्रवृति 
मन मेरा संतप्त हो चला

मचा हर तरफ  हाहाकार
भूख बेबसी सब लाचार
कुछ जीवन से गए हार
किया परित्याग समझ बेकार

देखी नहीं जाती उनकी दुर्दशा
मन मेरा व्याकुल हो उठा
चाहूँ मैं भी कुछ करूँ आज
जिससे मिले सबको अनाज

सबके घरों में चूल्हे जलें
कोई भी भूखा न रहे
सबके बच्चे फूले फलें
तब तृप्ति मन को मिले

सबकी बेटियाँ शिक्षा पायें
कुंठित भावनाएँ नष्ट हों
मन सबके शुद्ध पावन हों
कोई भी  न पथभ्र्ष्ट हो

ईश्वर सबको सद्ज्ञान दे
बुद्धि और क्षमादान दे
सबको सन्मार्ग पे लाये
संवेदना दिल में जगाएं
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 8 नवंबर 2017

आशा हम ऐसी जगायें

सुरम्य सी है धरा
नीला नीला है गगन
हवाएँ चली मंद मंद
पुलकित है मन उपवन

आओ मिलके ख़ुशी बाँटे
दुःख को दूर भगाएँ
ऐसे करें हम काम
दीप नए हम जलाएँ

बुझते हुए चिराग़ों को
 आज हम जगमगायें
कोई कोना न रहे अछूता
सबको एक पंक्ति में लायें

हर अनाथ बेसहारा को
आज हम गले लगायें
उनकी मुस्कुराहट को
आज फिर लौटाके लायें

धरती पे मानवता बसे
ऐसा कुछ करके दिखाएं
प्रेम भरा हर दिल हो
आशा हम ऐसी जगायें
@मीना गुलियानी

सोमवार, 6 नवंबर 2017

आओ थोड़ा जी लें

हम जीवन में कबसे भाग रहे हैं
तुम अकेले नहीं हो मैं भी साथ हूँ
आओ कुछ देर पेड़ की छाया में सुस्ता लें
कुछ मन का बोझ हल्का करें थकन उतार लें
वो भी क्या वक्त था जब हम मिले थे
क्या वो समाँ था क्या सिलसिले थे
वो सागर किनारे मचलती लहरों का देखना
रेत को पैरों के अँगूठे से कुरेदना
वो दिन रात पंख लगाकर उड़ गए
जीवन की प्रभात , दुपहरी ढल गई
अब साँझ चुनरी फैलाकर स्वागत कर रही है
चन्द्रमा की किरणें बाहें फैलाकर बुला रही हैं
इस भागती दौड़ती जिंदगी से थक गए हैं
अपनी मरूफियत के बोझ मन से उतार दो
गुज़रे पलों को पलकों में समेट लो
 जीवन की इस सांध्य बेला में
आँखे मुंदने से पहले जीवन में
उमंग भरके नए  भरके
खुशियाँ उँड़ेले आओ थोड़ा जी लें
@मीना गुलियानी 

दूर कहीं फिर मेरे होकर

आज तुम फिर से अजनबी बन जाओ
फिर से धीरे धीरे दिल में उतर जाओ

न पूछूँ गाँव तुम्हारा न पूछूँ  नाम तुम्हारा 
दोनों ही चुपचाप रहें आँखे ही करदे इशारा

 सागर का हो किनारा जहाँ थामा हाथ हमारा
चलें हम साथ साथ आये नज़र वही  नज़ारा

रेत के फिर महल बनाएं पलकों में सपने जगायें
चुपके चुपके चोरी से दिल की धड़कन बन जाएँ

सागर की लहरें जब हमसे करे अठखेलियाँ
तब हम भी किनारे  पे बैठे और ढूंढें सीपियाँ

रह जाएँ ये पल तब हमारे दिल में बसकर
जाना न मुझसे दूर कहीं फिर मेरे होकर
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 4 नवंबर 2017

सारा जीवन गुज़ार लेती है

आज की नारी घर बाहर संभाल लेती है
हर मुश्किल का वो हल निकाल लेती है
दुखी होने पर  ग़म हँसी में टाल देती है
घर में शान्ति के लिए चुप्पी साध लेती है
बिन कहे सबके मन की जान लेती है
 मसरूफ़ियत में खुद को तलाश लेती है
खुद टूटने पर भी खुद को संभाल लेती है
 छटपटाहट को मुस्कुराहट में ढाल लेती है
अपनी भावनाओं को दिल में उतार लेती है
प्रेम की चाह में सारा जीवन गुज़ार लेती है
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 2 नवंबर 2017

बाजी में जी छोटा न करते हैं

थोड़ा सुकूँ भी तुम ढूँढो इस जिंदगी में
ख्वाहिशें तो हम बेहिसाब करते हैं

खोये रहते हैं सब अपनी उलझनों में
चुप रहने वालों से उलझा न करते हैं

दिलों की महफ़िल में खामोशियाँ अच्छी हैं
मुहब्बत के क़रीनों में बेअदबी न करते हैं

चाहे तूफानी लहरें हों चाहे कितने पहरे हों
किश्ती खेने वाले हिम्मत हारा न करते हैं

जिन्दगी में कुछ खोना है कुछ पाना है
शतरंज की बाजी में जी छोटा न करते हैं
@मीना गुलियानी




साहिल पा जाती हूँ

तुम मेरी कल्पना में बसते हो
न जाने क्या मुझसे कहते हो

मैं जब कविता लिखती हूँ
तुम अपनी झलक दिखाते हो

कभी तुम सामने आते हो
कभी खुद को छिपाते हो

 जाने कैसा पावन रूप तुम्हारा
उज्ज्वल जैसे अंबर का तारा

सारा ज्ञान तुममें सिमट जाता
ऐसा प्रकाश पुंज तुमसे है आता

मैं खुद ही उसमें डूब जाती हूँ
लगता है साहिल पा जाती हूँ
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

न यूँ तुम गँवाया करो

दर्द अपना सभी से छुपाया करो
आँसुओं को न यूँ ही बहाया करो

होंठों पे हँसी यूँ ही छलकती रहे
ऐसा चेहरा सबको दिखाया करो

कौन सुने फरियाद दर्दे दिल की
बेरहम जहाँ को न बताया करो

हर तरफ जिंदगी में बिखेरो ख़ुशी
मिलें ग़म भी गर मुस्कुराया करो

शिकवे शिकायतें बड़ी बेमुरव्वत हैं
न इन पर अपना वक्त ज़ाया करो

हमेशा करो यकीं उसकी इमदाद पर
सब्र अपना न यूँ तुम  गँवाया करो
@मीना गुलियानी 

रविवार, 29 अक्तूबर 2017

सहस्रार निर्झर अन्तर

चन्द्रकिरण की ज्योत्स्ना से प्रकाशित है तन
प्रफुल्लित हुआ है देखो मेरे मन का भी उपवन

नभ के तारे चमक चमक कर मन को लुभाएं
अपनी रश्मि कणों  से चहुँ ओर प्रकाश फैलाएँ

बाल सुलभ हुआ आज मेरा प्रमुदित मन
वीणा सी झंकृत हुई तरंगित ये धड़कन

 कोई जैसे बुला रहा हो सोया भाग्य जगा रहा हो
त्वरित गति से कांपी धरती करने लगे पग नर्तन

नीला अंबर लगा झूमने बादल भी हर्षाने लगे
मन मयूरा नाच उठा गीत ख़ुशी के गाने लगे

भरा रोम रोम में अनुराग प्राणों का संचार हुआ
बरसों से प्यासी धरा में मधुमय मनुहार हुआ

अंतर्मन में गूँजे निनाद सुर अनहद बजे निरंतर
बरसी अमृत की धारा भी सहस्रार निर्झर अन्तर
@मीना गुलियानी



शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

अधिकार हमारा बाकी है

आहिस्ता चल मेरी जिंदगी
कुछ फ़र्ज़ निभाने बाकी हैं
कितना दुःख पाया है हमने
उसको भी मिटाना बाकी है

यूँ रफ्तार से तेरे चलने पर
अपने सब पीछे छूट गए
रूठों को मनाना बाकी है
रोतों को हँसाना बाकी है

,मेरी हसरतें पूरी हो न सकीं
कुछ ख़्वाब भी पड़े अधूरे हैं
जीवन में है कितनी उलझन
सबको सुलझाना बाकी है

कितने शिकवे इस रिश्ते में
मनुहार अभी तक बाकी है
मन के इस अवगुंठन पर
अधिकार हमारा बाकी है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

दिल पे घाव करते हैं

जब तेरी आँखों से दो आँसू छलकते हैं
मुझपे लम्हे वो नागवार से गुज़रते हैं

खुदारा इस लौ को अब तो बुझ ही जाने दो
मज़ारों पे रौशन चिराग अच्छे न लगते हैं

कितनी मासूमियत से वो पूछ बैठे हमसे
क्या ज़िन्दादिल इन्सा तन्हाई से डरते हैं

चलो जिन राहों पे तुम काँटे मुँह फेर लेते हैं
हम जैसे ख़ाकसारों के दिल पे घाव करते हैं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

सफर का मुसाफिर बनाया है

पैरों में सैंडल हो या जूते
पैरों के माप होते हैं
मिट्टी में मिट्टी बन जाते हैं
कोल्हू जब चलता है
चलते चलते घिस जाते हैं
जुर्म की इन्तहा तब होती है
जब वो पाँव बागी हो जाते हैं
जब पैरों की ज़ुम्बिश
कोई राग छेड़ देती है
सब कांप जाते हैं
मैंने पैरों को चलना सिखाया है
कंटीली वादियों में मिट्टी में
इस सफर का मुसाफिर बनाया है
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

फिर मुस्कुराने लगी

जिंदगी और मौत की लड़ाई रूबरू देखी
 जिंदगी हावी कभी मौत का पलड़ा भारी
साँसें मेरी धीरे धीरे घुटने लगी
दिल की धड़कन मेरी रुकने लगी
काली बदरिया से मैं डरने लगी
बिजली चमकी तो सिहरने लगी
हवा से पत्ते भी खड़खड़ाने लगे
दिल को मेरे और भी डराने लगे
जाने फिर कैसे तुम पलटकर आये
जिंदगी को भी मेरी लौटा लाए
सांस धीमे से मेरी चलने लगी
दिल की धड़कन भी जादू करने लगी
जिस्म में फिर से जान आने लगी
जिंदगी मेरी फिर मुस्कुराने लगी
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

होठों पे अपने हँसी लाना

मेरे द्वार पे तुलसी का पौधा है
जिसे बड़े चाव से मैंने सींचा है

देखो तो कितनी मंजरियाँ हैं खिली
तुम्हारे आने से उनको ख़ुशी मिली

पास ही उसके अमरुद की डाली है
जिसपे कूकती कोयल मतवाली है

सीताफल और अनार हो गए बड़े
तुमसे गुण सीखे हुए पैरों पे खड़े

इनकी आशाएं बलवती होने लगी हैं
कुछ कहानियाँ सी ये बुनने लगी हैं

देती हैं दलीलें मुझसे कुढ़ने लगी हैं
इन्हें दिलासा दो समझने लगी हैं

न हमसे यूँ उलझो इनकी भी सुनो
मत रूठो चुपके से ज़रा तुम हँस लो

  कुंठाएँ गुस्सा देहरी पे छोड़के आना
आओ जब होठों पे अपने हँसी लाना
@मीना गुलियानी

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

अपनों का पता चलता है

हर एक आदमी खुद ही मरता है
वक्त और हालात कुछ नहीं करते
हमला और बचाव खुद ही करता है

प्यार आदमी को दुनिया में
रहने लायक बनाता है
इसके सहारे दुनिया विचरता है

मेरे भीतर घने बादल गरजते हैं
त्योहारों का चाव महकता है
अंग अंग नाच उठता है

कभी गिरो तो घबराना नहीं
औकात का पता चलता है
उठायें हाथ तो अपनों का पता चलता है
@मीना गुलियानी 

मोती पाते हैं जो हताश नहीं होते

जिंदगी में कभी भी निराश नहीं होते
तकदीर के तमाशे से नाराज़ नहीं होते

तुम लकीरों में कभी यक़ीं मत किया करो
लकीरें उनकी भी हैं जिनके हाथ नहीं होते

रिश्ते वो नहीं जो रोज़ बनते हैं बिगड़ते हैं
रिश्ते  टूटते हैं जिनमे एहसास नहीं होते

गर दुःख हर किसी का दिलों में संजोते
तो दुनिया में पत्थरदिल इन्सा न होते

हाथ खूबसूरत हैं जो किसी को दें सहारा
 भावनाहीन है जिसमें जज्बात नहीं होते

वक्त की रेत पर सब कुछ फिसल जाता है
सागर  में मोती पाते हैं जो हताश नहीं होते
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

याद आती है

कुछ ऐसे आती है तुम्हारी याद
जैसे झील के उस पार नाव
बारिश की बूंदों में भीग जाती है
दिखती, सहमती ,ठहर जाती है

मुझे रहता है हर पल इंतज़ार
छूकर परछाई  चली जाती है
लगता है डरके सूरज से वो
यहीं कहीं पर छिप जाती है

 तुम्हारी आवाज़ को तरसता हूँ
तुम सपनों मेँ आती हो गाती हो
आँखों से छलके प्याले रीत गए
सुहाने पल बीत गए याद आती है 
@मीना गुलियानी



सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

दिल को यूँ बेज़ार न कर

गुज़रे वक्त को फिर से याद न कर
तकदीर में लिखे की फरियाद न कर

वक्त जैसा  भी होगा वो गुज़र ही जाएगा
कल की फ़िक्र में आज को बर्बाद न कर

जिंदगी तो सुख दुःख के दो पहलू हैं
ख़ुशी के पल जी ग़मों को याद न कर

खोल मन की खिड़की अँधियारे को मिटा
आँसू पोंछ ले दिल को यूँ बेज़ार न कर
@मीना गुलियानी

शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

राहते जां अब क्यों हो गए हैं

मेरे अलफ़ाज़ कहीं खो गए हैं
 क्यों खामोश  सब  हो गए हैं

 तेरी रहनुमाई दर्द का सबब बनी
आशना सभी बेगाने से हो गए हैं

जाने क्यों दर्द अंदर से सालता है
जख़्म दिल के फिर हरे हो गए हैं

क्यों इतनी कडुवाहट रिश्तों में घुली
दर्दे दिल जख्मों की  दवा हो गए हैं

नासूर से जख्म फिर रिसने लगे
बेकसी के आलम फना हो गए हैं

सुकूं इस दिल का जिसने लूट लिया
वही राहते जां अब क्यों हो गए हैं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

तेरी आँखों से छलक जाए

रोज़ सूरज यूँ ही निकलता है
शाम होने पर वो ढलता है
 धूप होती है साँझ होती है
जिंदगी यूँ ही  तमाम होती है

रात दिन जिंदगी के दो पहलू हैं
हर दिन रंग नए बदलते हैं
रात आनी है चाहे आ जाए
दिलों की कालिमा छंट जाए

गम की बदली सुबह में ढल जाए
तेरी खुशियों में चाँद लग जाए
जिंदगी तेरी फूलों सी महक जाए
ख़ुशी तेरी आँखों से छलक जाए
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

हर आंधियों पे भारी हैं

ओ पंछियो वक्त तुम्हारी उड़ान पे भारी है
तुम्हारे हौसलों को परखने की आई बारी है

मैं तो जीवन की हर जंग लड़ता हूँ
मुझे बचाना उसकी जिम्मेदारी है

कैसे मैं मान लूँ कि जीवन की जंग हारी है
मेरी तो मौत भी इस जिंदगी पे भारी है

मैंने तो रोशन कर लिए दिल में चिराग
जो ग़मों की हर आंधियों पे भारी हैं
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

वक्त थम जायेगा

खुद में डूबकर वक्त गुज़ारो गुज़र जाएगा
इसी बहाने खुद से परिचय भी हो जाएगा

बाहर के दीपक तो बहुत तुमने जलाए
 भीतर जलाओ तो उजियारा हो जाएगा

सबके गुण अवगुण को खूब परखा तुमने
झाँको भीतर खुद का अक्स नज़र आयेगा

तन को तो खूब महकाया उम्र भर तुमने
रूह को भी महकाओ सुकूँ मिल जाएगा

कभी वक्त मिले तो तन्हाई की सरगोशी में
धीरे से गुनगुनाओगे तो वक्त थम जाएगा
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 27 सितंबर 2017

माता की भेंट ----09

तर्ज़ ------घर आया मेरा परदेसी 

अखियाँ दर्शन अनुरागी चरणकमल से लौ लागी 

अब तो दर्श दिखा जाना 
प्यास को आके मिटा जाना 
मन मेरा बना बैरागी ------चरणकमल 

मैया जी अब न देर करो 
मन की उदासी दूर करो 
प्रीत अगन मन में जागी ---चरणकमल 

जोड़ा तुम्हरे संग नाता 
बेटी मैं हूँ तुम माता 
माँ ने क्यों ममता त्यागी ---चरणकमल 
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

माता की भेंट ---08

ओ दिसदा दरबार पहाड़ां वाली दा 
चल भगता कर दीदार पहाड़ां वाली दा 

दूर दूर तों संगता आइया 
उचिया लंबियाँ चढ़न चढ़ाइयाँ 
हर दिल विच वसदा प्यार --------पहाड़ां वाली दा 

था था पर्वत देंण नज़ारे 
पत्थरां विच गूँजन जयकारे 
एथे होवे मंगलाचार   -----------पहाड़ां वाली दा 

सबदे मन दी आस पुजावे 
कोई न दर तों ख़ाली जावे 
है रहमत दा भण्डार   ---------पहाड़ां वाली दा 

होके ध्यानू वांग दीवाना 
हस हस दे सिर नज़राना 
मन बन जा खिदमतगार ------पहाड़ां वाली दा 
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 25 सितंबर 2017

माता की भेंट ----07

जय जगदम्बे मात भवानी दया रूप साकार
सुनो मेरी विनती  आया हूँ तेरे द्वार 

आज फँसी मंझधार बीच मेरी नैया 
तुम बिन मेरा कोई नहीं है खिवैया 
नैया मेरी जगदम्बे माँ करदो भव से पार--------सुनो मेरी विनती

महिषासुर के मान मिटा देने वाली 
रावण जैसे दुष्ट खपा देने वाली 
पाप मिटा देती चामुण्डा ले कर में तलवार ------सुनो मेरी विनती

तेरे नाम की महिमा अजब निराली है 
अपने भक्तों की करती रखवाली है 
अपने दासों की खातिर तूने रूप लिए बहु धार ----सुनो मेरी विनती

जगमग करती जोत तुम्हारी है माता 
विद्या और बुद्धि बल की तू दाता 
गाता हूँ मैं गीत तुम्हारे मैया करो उद्धार -----  ----सुनो मेरी विनती
@मीना गुल

रविवार, 24 सितंबर 2017

माता की भेंट ---06

जगदम्बे शेरां वाली बिगड़ी संवार दे 
नैया भँवर में मेरी सागर से तार दे 

मैं अज्ञानी मैया कुछ भी न जानू 
दुनिया के झूठे नाते अपना मैं मानू 
आके बचालो नैया भव से उबार दे 

लाखों की तूने मैया बिगड़ी बनाई 
फिर क्यों हुई है मैया मेरी रुसवाई 
लाज बचाले मैया दुखड़े निवार दे 

जपूँ तेरा नाम मैया ऐसा मुझे ज्ञान दे 
नाम न भूलूँ तेरा ऐसा वरदान दे 
आशा की जोत मेरे दिल में उतार दे 
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 23 सितंबर 2017

माता की भेंट ---05

आज दया कर मुझ पर मईया ,सुनले करुण पुकार हो
नैया फँसी मँझदार में मेरी , करदे इसको पार हो

तुम महाकाली  तुम चामुण्डा तुम ही मात भवानी हो
तुम हो दीन दुखी की पालक तुम दुर्गा महारानी हो
मम जीवन की तुम रखवाली तुम मेरी आधार हो

तेरे नाम की जोत जलाकर पापी भी तर जाते हैं
सुख पाते हैं वो जीवन में जो तेरा गुण गाते हैं
तुम ही पालक हो भक्तों की तुम देवी साकार हो

अष्ट भुजा से दुष्ट खपाकर पहनी मुण्डनमाला है
सिंह वाहिनी खड्ग धारिणी रूप तेरा विकराल है
मईया दया की दृष्टि डालो तुम आशा का तार हो
@मीना गुलियानी 

माता की भेंट ---04

किसका दर है कि ज़बीं आप झुकी जाती है 
दिले खुद्दार दुहाई कि खुदी जाती है 

आये जो तेरी शरण हमने तब ये पहचाना 
तेरे दर पे ही तो किस्मत जगाई जाती है 

ढाये दुनिया ने सितम हमको तुम न ठुकराना 
तेरे दर पे ही तो खुशियाँ लुटाई जाती हैं 

रूठे दुनिया चाहे सारी न तुम खफ़ा होना 
तुझे पाने को ही हस्ती मिटाई जाती है 

अपने दासों पे कर्म मईया आज फरमाना 
तेरे दर पे ही तो बिगड़ी बनाई जाती है 
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

माता की भेंट ---03

मेरी मात आ जाओ तुझे दिल ढूँढ रहा है 
मुझे दर्श दिखा जाओ तुझे दिल ढूँढ़ रहा है 

तुम आओ तो ऐ माँ मेरी किस्मत बदल जाए 
बिगड़ी हुई तकदीर माँ फिर से सँवर जाए 
कबसे खड़ा हूँ मैं तेरी उम्मीद लगाए --------- तुझे दिल ढूँढ़ रहा है 

इस दुनिया ने ऐ माँ मेरा सुख चैन है छीना 
मुश्किल हुआ है आज तो बिन दर्श के जीना 
आवाज़ दे मुझको माँ अपने पास बुला ले------ तुझे दिल ढूँढ़ रहा है 

रो रो के मईया आँखे भी देती हैं दुहाई 
सुनलो मेरी विपदा मईया जी करलो सुनाई 
अब जाऊँ कहाँ तुम बिन नहीं और ठिका है ----- तुझे दिल ढूँढ़ रहा है 
@मीना गुलियानी 

माता की भेंट ----02

तर्ज़ ----रहा गर्दिशों में हरदम 

मेरी मात आओ तुम बिन, मेरा नहीं सहारा 
दर्शन दिखाओ मुझको , दिल ने तुझे पुकारा 

आके हाल मेरा देखो , दुनिया के दुःख हैं झेले 
तेरे बिना जहाँ में , रोते हैं हम अकेले 
माँ मुझे न तुम भुलाना , मुझे आसरा तुम्हारा 

क्यों बेटे पर तुम्हारी, नज़रे कर्म नहीं है 
सारी ये दुनिया माता , वैरी मेरी बनी है 
मेरी लाज को बचाओ, मैं बच्चा हूँ तुम्हारा 

मेरे आँसुओ का तुम पर ,कोई असर नहीं है 
कैसे सुनाऊँ तुमको, विपदा जो आ पड़ी है 
मँझदार में फंसा हूँ ,सूझे नहीं किनारा
 @मीना गुलियानी 

बुधवार, 20 सितंबर 2017

माता की भेंट -01

तर्ज़ ---मैं  कता प्रीतां नाल

मैं करा प्रीतां नाल ---------------------------- दर्शन मइया दा
वा वा दर्शन मइया दा-----------------सोहणा दर्शन मइया दा

गुफा मइया दी सोहणी लगदी पर्वत दे विचकार
मइया शेरां वाली दा , है सुन्दर दरबार   - ------दर्शन मइया दा

आये भगत प्यारे मइया दे बोलण जय जयकारे
जेहड़ा उसदा नाम ध्यावे , पल विच उसनू तारे --दर्शन मइया दा

मइया जी दे द्वारे सोहणी जगदी ऐ जोत न्यारी
माता जी दी शेर सवारी, लगदी ऐ प्यारी प्यारी ---दर्शन मइया दा

माँ अम्बा जगदम्बा जी दा सुन्दर भवन रंगीला
प्रेम दे वाजे वजदे दर ते , नाम दी हो रही लीला ---दर्शन मइया दा

दुर्गा शक्ति जी दे अग्गे हाल फोलिये दिल दे
शेरां वाली दे दरबारों , मंगे मनोरथ मिलदे -----  दर्शन मइया दा
@मीना गुलियानी




मंगलवार, 19 सितंबर 2017

अरमाँ पूरे नहीं होते

           कभी ख़ुशी पाने की आशा
           कभी है गम की निराशा
           कुछ खोके पाने की आशा
           यही है जीवन की परिभाषा

इंसानियत आदमी को इंसान बना देती है
लगन हर मुश्किल को आसान बना देती है
सब लोग यूँ ही मंदिरों में नहीं जाते हैं
आस्था पत्थरों को भी भगवान बना देती है

कभी मेहनत करने पर भी सपने पूरे नहीं होते
इससे निराश न होना कभी हम अधूरे नहीं होते
जुटाओ हिम्मत बढ़ो आगे छू लोगे आसमाँ भी
बिना लहरों  से टकराए अरमाँ पूरे नहीं होते
@मीना गुलियानी


रविवार, 17 सितंबर 2017

चैन न दिल को आए

तुम बिन न लागे जिया
अब तक काहे न आए

काहे बसे परदेस बलमवा
बिसरे तुम मोरा अँगनवा
कासे कहूँ अब कैसे रहूँ मैं
बिरहा तेरी जो सताए

ऐसे बेदर्दी से नाता जोड़ा
जिसने मेरे दिल को तोडा
बिसर गया मोको हरजाई
जाके देस पराए

छाये हैं चहुँ ओर अँधेरे
कैसे होंगे अब ये सवेरे
प्रीत मेरी ठुकराके तूने
दर्द भी मोरे बढ़ाए

अब छाये बादल मतवाले
 दिल को बोलो  कैसे संभाले
प्रीत अधूरी गीत अधूरे
चैन न दिल को आए
@मीना गुलियानी

बुधवार, 13 सितंबर 2017

स्मृति पलकों में बन्द रहती है

तुम्हारी स्मृति पलकों में बन्द रहती है
मुझसे वो बातें चन्द करती ही रहती है

कभी पलकों में ये मुस्कुराती है
कभी कभी अश्क भी बहाती है
जाने क्यों फिर भी तंग रहती है
दिल में इक जंग जैसे रहती है

तुमको ये हाले दिल बता देगी
पूछोगे गर तो ये पता देगी
मुझसे शायद नाराज़ रहती है
तभी ये कुछ उदास रहती है

कभी तो हौले से गुनगुनाती है
कभी थपकी देके भी सुलाती है
दिल के हर राज़ बयां करती है
मन में शायद सबसे डरती है

कभी ये लोरियाँ सुनाती है
कभी रूठूँ तो ये मनाती है
कभी आसमाँ से उतरती है
कभी ज़मीं पे पग धरती है
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

चिरनिद्रा में सो लेने दो

तुम आज मुझे सो लेने दो
चुप चाप मुझे रो लेने दो
बरसों से सुख से सो न सका
चिरनिद्रा में सो लेने दो

क्या सोचा था और क्या पाया
दिल जाने कहाँ मुझको लाया
लहरों ने थपेड़े मुझको दिए
अब चाके गरेबाँ सीने दो

क्या क्या न सितम मुझपे टूटे
इक साथ तेरा तब पाया था
तूने भी भटकने को छोड़ा
अब मुझको सुकूँ से जीने दो

होठों तक आते आते भी
क्यों नाम तेरा न ले पाता
दिल रोता है पीड़ा से मगर
चुप चाप ये आँसू पीने दो
@मीना गुलियानी 

रविवार, 10 सितंबर 2017

ख्वाबों में मेरे आया करो

आ जाओ बारिश में थोड़ा भीग लें
इतना भी हमसे शर्माया न करो

चाँदनी बिखरी तेरे तब्बसुम पर
अपने जलवों को न छिपाया करो

दर्द जिंदगी भी कितना देती है
इसे आँसुओ में न बहाया करो

कुछ तुम्हारे लब खामोश रहते हैं
कभी खुलके तो मुस्कराया करो

जिंदगी वादों पे गुज़र जाती है
अपनी नज़रें न यूँ चुराया करो

हमसे इतना भी दूर मत जाओ
कभी ख्वाबों में मेरे आया करो
@मीना गुलियानी


गुरुवार, 7 सितंबर 2017

आज किसी ने चुपके चुपके

छेड़ दिया है मन वीणा का तार किसी ने चुपके चुपके
गीत से दिल गुञ्जार किया है चोरी चोरी चुपके चुपके

दिल को दिए हैं मीठे सपने
कुछ हैं पराये कुछ हैं अपने
वीणा का झंकार किया है
आज किसी ने चुपके चुपके

जानी मैंने  नैनो की भाषा
जागी फिर जीने की आशा
दिल को फिर गुलज़ार किया है
आज किसी ने चुपके चुपके

प्रीत को दिल में किसने जगाया
मृतप्राय को जीवन्त बनाया
स्पन्दन दिल में फिरसे किया है
आज किसी ने चुपके चुपके
@मीना  गुलियानी


मंगलवार, 5 सितंबर 2017

उन्नत पथ पर ले जाए कौन

बढ़ती जा रही हैं विडंबनाएँ
उनसे हमें  उबारे अब कौन
किनसे हम उंम्मीद लगाएं
सपने हमारे सँवारे कौन

सारी संवेदनाएँ सूख चली हैं
हृदय की भावना सिमट चली है
दिग्भ्रमित पीढ़ी हो चली है
राह सही बतलाये अब कौन

टूटी हैं मर्यादा आंतक का उत्पात मचा
अंधविश्वास से हरसू कोहराम मचा
अजब के गोरखधंधों में इंसान फंसा
संकट गहराया इतना उबारे अब कौन

है भरोसा युवा पीढ़ी पर आगे वो ही आएँ
धरती की उर्वरता को वो ही लहलहाएं
उनकी ही कर्मठता से बढ़ेंगी संभावनाएं
देश को अब उन्नत पथ पर ले जाए कौन
@मीना गुलियानी

शनिवार, 2 सितंबर 2017

घुट घुट के न मर जाऊँ

टूटी  है वीणा टूटी है आशा
व्यथित मन की हूँ परिभाषा
बोलो गीत मैं कैसे गाऊँ
कैसे मै  अब मुस्काऊँ

कब जाने ये बंधन टूटा
जाने क्यों तू मुझसे रूठा
जोड़ूँ कैसे मैं टूटे रिश्ते
कैसे दिल को धीर बँधाऊँ

सारे अपने छूट गए हैं
 रिश्ते नाते टूट गए हैं
अपने पराये से लगते हैं
किसको मैं मीत बनाऊँ

आसमान  से टूटे तारे
बिखरे हैं बनके अंगारे
सुलग रहा है मन मेरा
जाने क्यों मैं अकुलाऊँ

हाल कोई तो पूछे मेरा
काश कोई तो होता मेरा
किसे दिखाऊँ दिलके छाले
घुट घुट के न मर जाऊँ
@मीना गुलियानी

गुरुवार, 31 अगस्त 2017

तुम न होते तो क्या होता

कभी कभी मैं सोचती हूँ
तुम न होते तो क्या होता
न दिल का सुकूँ खोता
न यूँ उदास ये होता

            न नज़रों के बोल हम सुनते
            न सपने नए रोज़ बुनते
             न कभी फूल मुस्काते
             न भँवरे ये गुनगुनाते

न चिड़िया ये चहकती
न हवाएँ यूँ बहकती
न घटाएँ आँसू बहाती
न कलियाँ यूँ मुस्काती

           न आता मदमस्त वो सावन
           न फूलों से महकता गुलशन
          न दिल गुलज़ार ये होता
          न तुमसे प्यार यूँ होता

न दिल में अरमां होते
न आँख में आँसू होते
न होती हमें बेकरारी
न दिल को होती लाचारी

          न कल कल झरने बहते
          न हम तुम ऐसे मिलते
         न चमन में फूल यूँ खिलते
         न खुशियों के पल मिलते
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 30 अगस्त 2017

जाने कब परदेसी आये

ये साँसों की डोर न पड़े कमज़ोर
इक बार तो मुख दिखला जाना
बात जोहती हैं आँखे सूने हैं कोर
दिल मेरा ज़रा सा बहला जाना

                 कोयल कूकना है भूली मैना रास्ता भूली
                 भूली चिड़िया रानी अब तो चहकना
                 भूले भँवरे अपनी गुंजन भूले बहकना
                 कलियाँ सुध बुध में भूली हैं खिलना

तुम बिन बिरहन कल न पाती
भेजी लिख लिख तुझको पाती
कब आओगे इस देस लिखना
परदेसी न तड़पाओ अब इतना

                आवे बिरहन को फिर चैन
                पोंछे भर भर अपने नैन
                बैठी पथ पे आँख बिछाए
                 जाने कब परदेसी आये
@मीना गुलियानी


सोमवार, 28 अगस्त 2017

सब्र की इन्तहा कहाँ तक है

न पूछ मुझसे सब्र की इन्तहा कहाँ तक है
तू ज़ुल्म कर ले तेरी हसरत जहाँ तक है

न पूछो मुझसे ये नज़रें क्या ढूँढती रहती हैं
पूछो इनसे ये खुद से भी ख़फ़ा कहाँ तक हैं

आये ख्याल उनके तो आँखों में सिमट गए
मालूम न था इनको मुरव्वत कहाँ तक है

हुए मशहूर तुम तो हम भी मसरूफ हो गए
अब पता चला हमें तेरी शौहरत कहाँ तक है

काँधे पे ज़नाज़ा खुद का तलाशते राहबर को हम
किससे पूछे पता उसका जहाँ फैला कहाँ तक है
@मीना गुलियानी 

रविवार, 27 अगस्त 2017

संतप्त मन को शांत कर जाओ

आज तुम मेरे हृदय में बस जाओ
 अतृप्त मन पे  करुणाजल बरसाओ

थम जाए भावों का क्रन्दन
विचलित न हो फिर ये मन
तुम फुहार बनके बरस जाओ

नवांकुर फूटने लगा धरा पर
थामो हाथ मेरा बनो हमसफ़र
मन मेरा तुम आज हर्षाओ

कैसी विहंगम दृष्टि तूने डाली
कूकी है देखो कोयल ये काली
मन मयूरा नाचे  साज़ बजाओ

संध्या भी देखो तारों को लाई
धानी चुनरिया मोरी लहराई
संतप्त मन को शांत कर जाओ
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

धड़कन कैसे सुन पाओगे

बोलो तो ज़रा मेरे अन्तर्मन कितना मुझको तड़पाओगे
कब तक मैं जिऊँ चुप रहके कब तक मन को बहलाओगे

हर पीड़ा मुझसे पूछती है ये कलियाँ क्यों मुझसे रूठी हैं
तुम जानते हो इनकी भाषा मेरी तो हिम्मत टूटी है
अब तक तो जिए हम घुट घुट के कितना और सताओगे

मैं भूल गई प्यारे सपने गुम हो गए सब जो थे अपने
मोती की माला बिखर गई जिनमें गूँथे थे हर सपने
अब कैसे गाऊँ गीत नए सुर कैसे तुम सुन पाओगे

न साज बजाया जा सकता न गीत कोई दोहरा सकता
अब तुम ही बताओ कैसे अपना दिल मैं बहला सकता
साँसे भी अब थमने को है धड़कन कैसे सुन पाओगे
@मीना गुलियानी

सोमवार, 21 अगस्त 2017

घड़ी हुई जग जाने की

समय परिवर्तनशील बना  है घड़ी हुई जग जाने की
अपनी क्षमता को पहचानो बात यही समझाने की

सब स्वार्थ के पुतले यहाँ हैं मन में कितनी कटुता है
अपनापन भुलाया सबने मानव मूल्य न दिखता है
हिम्मत अपनी आज जगाओ उन्हें मार्ग पर लाने की

आज की पीढ़ी को तुम देखो कितनी दलदल में है धँसी
हर तरफ है अनाचार दुष्प्रवृति के जाल में है ये फँसी
तुमसे ही  आशाएँ हैं इनको सन्मार्ग दिखलाने की

तुम भारत माँ के सपूत हो कर  सकते हो काम बड़ा
उस जननी का मान बढ़ाओ जिसको तुमपे नाज़ बड़ा
है ज़रूरत आज हमें है  गुमराह को राह पे लाने की
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

पथ की ऐसी करें तैयारी

आज की नारी में ऊर्जा का भारी संचार हुआ
नई चुनौती की तैयारी हेतु इसको है चुना
युगों से सुप्त जन सत्ता भी आज है जागी
धर्म कर्म की सत्ता में है इसकी भागीदारी

काम नहीं आसान बहुत लहरों से टकराना
है चुनौतीपूर्ण पर तनिक न तुम घबराना
सतत साधना बुद्धिबल से साहस बढ़ाएँ
युग निर्माण में जुड़ें हम ऐसा कदम बढ़ाएँ

वैर भाव मिटा दें सारे हर कटुता बिसरा दें
जन जन के मानस  में आशादीप जलादें
रोक न पाए कोई भी अक्षमता या लाचारी
हर अवरोध मिटादें पथ की ऐसी करें तैयारी
@मीना गुलियानी 

रविवार, 13 अगस्त 2017

गम रहेगा क्यों फासले मिले

जिंदगी की तलाश में जब हम निकले
जिंदगी तो मिली नहीं तजुर्बे बड़े मिले

दोस्तों से जब हम  मिले तो  पता चला
जिंदगी में रौनक के उनसे थे सिलसिले

जिंदगी मेरी एक रंगमंच बनकर रह गई
टूटते पुर्जे जुड़ने का नाटक करते हुए मिले

जलने वालों की इस जहाँ में कोई कमी नहीं
बिना तीली सुलगाये दिल जलाते हुए मिले

शीशा और पत्थर बनकर संग रहे दोनों
अब बात कुछ और है टकराते हुए मिले

जिंदगी के कई  ख़्वाब अधूरे पड़े रहे
हर लम्हा गम रहेगा क्यों फासले मिले
@मीना गुलियानी


बुधवार, 9 अगस्त 2017

सन्देश ये तुमको देती है

तेरी आँखों से बहता जल
बूँद बूँद इक मोती है

नदिया की धारा भी देखी
सागर  से वो मिलती है
पर किसी की याद में तेरी
आँख रात भर रोती है

नीम खेजड़ी की शाखाएँ
कितनी ही गदराई हैं
चकवी चकवे की याद में
आँसू से मुख धोती है

नया सवेरा फिर आएगा
डूबा सूरज उग जाएगा
हर पत्ते पर ओस की बूँदे
सन्देश ये तुमको देती है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 5 अगस्त 2017

सर अपना झुकाने लगे हैं

बिना पिए ही कदम लड़खड़ाने लगे हैं
राहों में फिर से डगमगाने लगे हैं

बहारें तो आई थीं कुछ दिल पहले
ख़ुशी दिल में आई हम भी बहले
गुलिस्तां के फूल मुरझाने लगे हैं

सोचा था क्या हमने क्या हो गया है
यकीं जिसपे था बेवफा हो गया है
दिल तसल्लियों से बहलाने लगे हैं

जिए हम अधूरे रहे हम अकेले
जाने कहाँ छूटे खुशियों के मेले
सपनों के फूल बिखराने लगे हैं

करूँ मैं दुआ गर उसको कबूल हो
गुनाह माफ़ करदे जो उसे मंजूर हो
सज़दे में सर अपना झुकाने लगे हैं
@मीना गुलियानि


सोमवार, 31 जुलाई 2017

कैसे सपने साकार करूँ

कबसे समाया तू मेरे मन में
कैसे इसका इज़हार करूँ
दुविधा के ऊँचे पर्वत को
कैसे  मैं अब पार करूँ

जीवन के पथ की ये देहरी
हर दम आती यादें तेरी
प्रीत की उलझी भंवरों से
कैसे तुम बिन आज तरूं

तेरे बिना हम हुए अधूरे
मिले तुम सपने हुए पूरे
इक डोरी से दोनों जुड़े
कैसे सपने साकार करूँ
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

नाचें और गुनगुनाएँ

शाम है कोहरे में डूबी हुई
समुद्र का किनारा वीरान है
आओ हम तुम गीत गाएँ
जगमगाएँ उदास साँझ है

                       मिल बैठ कर लें मौसम की आहट
                       ठण्डे रिश्तों में भरदें गर्माहट
                      कटुता खत्म करें जी भर जी लें
                      दिल से दिल बात करे होंठ सी लें

जो भी हों शिकवे बिसराएँ सारे
तोड़के लायें आसमाँ से तारे
गहराने लगी शाम कंदीले जलाएँ
आओ झूमें नाचें और गुनगुनाएँ
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 26 जुलाई 2017

फिर से ज़रा आज जगमगाओ

आज तुम आँसू मत बहाना
दर्द को भी समीप मत लाना
आज तुम केवल मुस्कुराना
मत बनाना कोई भी बहाना

लहरों का ठहराव कहाँ होता है
जिंदगी को भी चलना होता है
उलझने भटकाव आते जाते हैं
समय की नाव को खेना होता है

पतझड़ हमें कहाँ सुहाता है
लेकिन वसन्त गुनगुनाता है
गर्मी में सूरज तमतमाता है
सर्दी में वही मन को भाता है

आज भूलकर कड़वे पलों को
जीवन में फिर प्रीत जगाओ
ढलती हुई जीवन की शाम को
फिर से ज़रा आज जगमगाओ
@मीना गुलियानी




शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

साये से बिछुड़ जाना है

जिंदगी इक सफर है चलते ही जाना है
जीवन है जिम्मेदारी उसको निभाना है

कभी पाई ख़ुशी कभी मिला हमें गम
कभी खाई ठोकर जहाँ चूके थे हम
लेकिन हँसते हँसते सब सहते जाना है

मर मरके भी हम पूछो कैसे जिए
कितने रोये थे हम कितने आँसू पिए
अश्कों को दी कसम न बाहर आना है

दोस्त दुश्मन बने पराये अपने बने
जिनपे हमको गुमां था वो कातिल बने
तन्हाइयों में साये से बिछुड़ जाना है
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 20 जुलाई 2017

यादों का वो सिलसिला

आज ख़ुशी के मारे उसकी चीख जो निकली
लगा जैसे आसमां से कौंधी हो बिजली
तेरे आँचल को लहरा के पवन हँसके निकली
बरखा की बूंदे तेरे मुखड़े से झूमके निकली

बहारें गुनगुना उठीं पायल झनझना उठी
गीत ले  बहारों के तितलियाँ मुस्कुरा उठी
फूलों से महके गुंचे तमन्नाएँ खिलखिला उठी
हथेलियों से मुँह छिपाए अदाएं झिलमिला उठी

सितारों की कायनात सजी चाँद दूल्हा सजा
रात की तन्हाइयों में रजनी का मुख सजा
सिहरते ,दुबकते ,बादलों का देखो चला काफिला
शर्माते , सकुचाते थमा यादों का वो सिलसिला
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

अकेले मन घबराता है

आज फिर दिल मेरा उड़ा उड़ा जाता है
खुशियों का लेके पैगाम कोई आता है

हवा में संदली दुपट्टा जब लहराता है
खुशबू से तन मन मेरा महका जाता है

गेसुओं की लटें  माथे पे बल खाती हैं
सर्पिणी सी बन हवा में वो लहराती है

तेरे तब्बसुम से चाँद भी शर्मा जाता है
बादलों को भी देखके पसीना आता है

बौछारें बनके वो मुझपे बरस पड़ती हैं
रिमझिम सी टिप टिप बूँदें पड़ती हैं

ऐसा मौका कहाँ रोज़ रोज़ आता है
चले भी आओ अकेले मन घबराता है
@मीना गुलियानी


बुधवार, 5 जुलाई 2017

औंधे मुँह गिर पड़ा

अक्स अपना देखने को मन मेरा था जब करा
झील पर पहुंचा तो देखा उसका पानी था हरा

                  सोचा था तन्हाई ही है मेरे जीने का सबब
                  उसको मिलने पर सोचा तन्हा मै क्यों रहा

अपनी बर्बादी के गम से दिल बहुत मेरा भरा
मेरे जिस्म का साया मुझसे इस कदर है डरा

                    थे बुरे हम पर खुद को ही समझा खरा              
                   डूबा दिल का सफीना औंधे मुँह गिर पड़ा
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 22 जून 2017

सच बोलना भी दरकिनार

मै बहुत कुछ सोचता हूँ पर कहता नहीं
कहना तो क्या सच बोलना भी दरकिनार

अब किसी को दरार नज़र आती नहीं
घर की दीवारों पर हैं पर्दे बेशुमार

कैसे बचकर चलें सूरत नज़र आती नहीं
रहगुज़र घेरे हुए हैं लिए तोहमतें हज़ार

रौनके ज़न्नत भी रास न आई मुझे
सुकूँ मिला था जहन्नुम में बेशुमार
@मीना गुलियानी

सोमवार, 19 जून 2017

तुमको मेरी याद दिलायेंगे

मेले में गर भटकते तो ठौर मिल जाता
 घर में भटके हैं कैसे ठौर अपना पायेंगे

आँच कुछ बाकी है धुआँ निकलने दो
देखना मुसाफिर इसी बहाने आयेंगे

पाँव जल में इस कदर न हिलाओ तुम
बुद्बुदे पानी के हिलके टूट ही जायेंगे

गीत मेरे जो अधूरे और अछूते रह गए
देखना कल तुमको मेरी याद दिलायेंगे
@मीना गुलियानी 

सपने ज़रा प्यारे तू देख

दुःख का दरिया दूर तक फैला हुआ
बाजुओं की ताकत देख धारे न देख

जंग जीवन की लड़नी पड़ेगी तुझे
हकीकत ये खौफ के मारे न देख

न हो मायूस देख धुंधलका इस कदर
रोज़नों को भी इन दीवारों में देख

चमका ले किस्मत छू ले आसमां तू
घर अँधेरा है तो क्या  तारे भी देख

दिल बहला ले मगर इतना न उड़
सम्भल के सपने ज़रा प्यारे तू देख
@मीना गुलियानी

गुरुवार, 15 जून 2017

मोर भी नाचे डाली डाली

देखो कैसा फूल खिला है इस उपवन में
झूम उठा है जीवन हरियाली आँगन में

कण कण पर देखो प्रसून के आया पराग है
गा रही है गीत मधुमास के क्या अनुराग है

फूलों की रुत लाई  कैसी ये फुहार है
 मन में उमंग छाई मस्ती बेशुमार है

प्यार के गीत सुनाती है कोयल ये काली
झूम झूम के मोर भी नाचे  डाली डाली

कुहुक कुहुक कर  नाच रहा है मनवा उसका
देखो चित्त चुरा लिया गोरी ने जिसका
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 13 जून 2017

ऐसा देश बनायेंगे

गाओगे जब गीत तुम
मौसम सुहाने आयेंगे
मुस्कुराओगे जो तुम
फूल खुशबु लुटायेंगे

                     कलियाँ फिर खिलने लगेंगी
                      भँवरे भी गुनगुनायेंगे
                      चहकेंगी चिड़ियाँ चमन में
                      पत्ते भी लहलहायेंगे

धरा भी उगलेगी सोना
श्रमकण भी जगमगायेंगे
हर घर से मिटे अँधेरा
ऐसा दीप जलायेंगे

                    कोई भी भूखा न सोए
                    ऐसी अलख जगायेंगे
                    धन धान्य से परिपूर्ण हो
                    ऐसा देश बनायेंगे
@मीना गुलियानी

जीवन ज्योति जगाओ तुम

ये जीवन इक समरांगण है
 हार जीत होती है जीवन में

थक के बैठ न जाना तुम
आगे कदम बढ़ाना तुम

जीवन का आनन्द मिलेगा
जब उतरोगे रण में तुम

बहेगी फिर प्रेम की गंगा
जीवन को महकाओ तुम

बंजर धरती सोना उगले
ऐसी धरा बनाओ तुम

माथे से मेहनत का पसीना
आज अपने बहाओ तुम

छोडो नैराश्य मिटाओ वैमनस्य
जीवन ज्योति जगाओ तुम
@मीना गुलियानी 

रविवार, 11 जून 2017

मेहमाँ तुम्हीं तो हो

पछताओगे इक दिन तुम दिल मेरा उजाड़कर
इस दिल में बसता कौन है मेहमाँ तुम्हीं तो हो

आता है तुमको रहम जुल्मों के बाद भी
अपने किए पे खुद पशेमां तुम्हीं तो हो

मेरी आँखों का नूर दिल का सुरूर हो तुम
 हम जानते थे जान के खैरखाह तुम्हीं हो

हम भूल न पायेंगे कभी तेरी कद्र्दानियाँ
हर किस्से में पुरज़ोर से शुमार तुम्हीं हो
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 8 जून 2017

तेरी याद बहुत सताती है

जब ये दुनिया की धूप मुझे झुलसाती है
तब मुझे तेरी याद बहुत सताती है

               जिंदगी के हर मुश्किल पड़ाव पर
               तेरी सांत्वना मेरा हौंसला बढ़ाती है

काम से थककर घर लौटने के बाद
तेरे हाथों की रोटी मन को भाती है

             जब ग़म का अँधेरा मेरा हौंसला तोड़ता है
             तेरे प्यार की रोशनी राह को दिखाती है
@मीना गुलियानी


बुधवार, 7 जून 2017

सुनता है वही सबकी फरियाद

हर पल जीवन के तू हँसके गुज़ार
जिंदगी के दो पल मिले हैं उधार
मत इनको रोके आंसुओं में गुज़ार

जो अब भी न समझा तो नादानी तेरी
यूँ ही बीत जायेगी जिंदगानी तेरी
सभी भूल जायेंगे कहानी ये  तेरी

तू आत्मबल बढ़ा और आगे बढ़
कर हिम्मत बुलन्द पर्वत पे चढ़
छू  लेगा आसमां भी ज़रा आगे बढ़

कर्म ऐसा कर दुनिया रखे याद
न डर रख हमेशा उसको तू याद
सुनता है वही सबकी फरियाद
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 5 जून 2017

हमें जीना आना चाहिए

जिन्दगी अनमोल है हमें जीना आना चाहिए
चाहे लाखों गम भी आयें मुस्कुराना चाहिए

दिल पे चाहे हो दर्दो गमों का बोझ भारी
भूलकर हर दुःख को हँसना आना चाहिए

माना आशा के जो पल निराशा में ढल गए
ख़ुशी में उन पलों को भूल जाना चाहिए 

कभी जीत तो कभी हार का नाम है जिंदगी
हर घड़ी परीक्षा की है ये समझ आना चाहिए
@मीना गुलियानी 

रविवार, 4 जून 2017

कोई जीवन राग सुनाओ ना

जिंदगी का फलसफा कहीं शबे ग़म न बने
 जीवन के पथ में कोई निराशा बिंदु न बने
 अब कोई कटुवचनों से दिल धड़काए ना

                      चाँद सितारो तुम भी आओ संग हमारे तुम भी गाओ
                      अँधेरी रातों के दीपक बन धरती को तुम जगमगाओ
                       फिर कोई अलगाव न उभरे  ऐसा साज़ बजाओ ना

सच्चा साथी जब मिल जाए हर लम्हा मंज़िल बन जाए
किसी पड़ाव पे साथ न छूटे दिल का अरमा वो बन जाए
सांस सांस की धड़कन पर कोई जीवन राग सुनाओ ना
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 2 जून 2017

दिलों में चाहत बनी हुई है

झुकी हैं पलकें खामोश लब हैं दिलों में चाहत बनी हुई है
ये रौशनी भी दिल की सिहरन हालत ऐसी बनी हुई है

वो पास आये तो दूर बैठे , क्या कोई समझे क्या उनसे पूछे
कुछ हमसे बोलो लब ये खोलो ,धड़कन हमारी थमी हुई है

तुमने न सोचा न हमने जाना, क्या क्या सोचेगा ये ज़माना
ज़रा तो मेरे करीब आओ , नज़रें जहाँ की तनी हुईं हैं

चेहरा छिपाते हथेलियों से ,जैसे अंगारे बरस रहे हों
पाँव ज़रा तुम सम्भल के रखना फूलों सी ज़मी हुई है
@मीना  गुलियानी 

शनिवार, 27 मई 2017

ये क्या है माज़रा

तुझको देखने से कभी मन नहीं भरा
मेरी कसम बताओ ये क्या है माज़रा

जिंदगी तो मेरी इक लम्बी सुरंग है
जहाँ पे खड़ा हूँ मै वहीँ कोई सिरा

जाने क्या सोचते रहते हो तन्हा तुम
फिरता  अंधेरों में जैसे कोई डरा डरा

सिर छुपाने के लिए कोई जगह चाहिए
यातनाओं से इस दिल का वास्ता पड़ा

गुलशन उजड़ने के बाद भी निशाँ बाकी हैं
कभी हुआ करता था ये चमन हरा भरा
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 25 मई 2017

अठखेलियाँ बहुत करती है

मुझसे धूप अठखेलियाँ बहुत करती है
एक छाया सी सीढ़ी उतरती चढ़ती है

दिल में दरारें गहरी पड़ गईं हैं
जैसे ये कोई बंजर धरती है

तुमको छू लेने भर ही सहसा
गुलाबों से ओस जैसे झरती है

तुम मेरा साथ दे दो इन अंधेरों में
एक चिड़िया धमाकों से सिहरती है

आगे निकल गए घिसटते हुए कदम
मूरत संवारने में और भी  बिगड़ती है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 20 मई 2017

हवन वो करने लगा है

फिर हवाओं का रुख बदलने लगा है
सोया हुआ जगा आँखे मलने लगा है

जिंदगी के सफर का पहिया टूटा पड़ा था
मिले तुम तो फिर से वो चलने लगा है

 आग सीने में अब तक ठंडी पड़ी थी
यकायक सा पानी उबलने लगा है

जो रुका था अलावों की आंच लेने को
जली जब हथेली तो मसलने लगा है

जिंदगी अँधेरे में होम जिसने करदी
उजाले में हवन वो करने लगा है
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 19 मई 2017

बबूल के साये में लाये तुम

रहनुमाओं की अदा पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती दुनिया को सम्भालो तुम

दर्दे दिल का पैगाम भी उनको पहुँचेगा
कोई नश्तर सीने में उतारोगे जब तुम

कहाँ तक सहेंगे जुल्मों सितम हम
कोई रोशनी ढूँढ़ लाओ कहीं से तुम

तेरे आने से  रौनके महफ़िल जवां हुई
कोई खुशनुमा ग़ज़ल गुनगुनाओ तुम

सोचा था कि दरख्तों में छाँव होती है
पता न था बबूल के साये में लाये तुम
@मीना गुलियानी

बुधवार, 17 मई 2017

सवालों की बारिश लीजिए

तुम चाहते हो पत्ते भी गुनगुनाएँ
पेड़ों से पहले उनकी उदासी लीजिए

जीना मरना तो लगा रहेगा यहाँ पर
कुछ रोज़ ज़रा सुकून से जी लीजिए

अपने होंठों को सीकर तुम चुपचाप रहे
मगर खामोशी ने करदी मनादी लीजिए

हैरा थे अपने अक्स पे घर के तमाम लोग
शीशा चटकने पे सवालों की बारिश लीजिए
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 16 मई 2017

न सीरत बिगड़नी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी ये आग जलनी चाहिए

दर्द की लहर अब पर्वत नुमा हुई
इसमें कोई धारा निकलनी चाहिए

दरों दीवारें भी कमज़ोर हुई अब तो
 रिवाज़ों की बुनियाद हिलनी चाहिए

दिल बहलाओ मगर इतना न तुम उड़ो
सपने बिखरे न सीरत बिगड़नी चाहिए
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 15 मई 2017

कमाल देखिए

लफ्ज़ एहसास जताने लगे कमाल देखिए
ये तो माने भी छुपाने लगे कमाल देखिए

कल जो लोग दीवार गिराने आये थे
वही दीवार उठाने लगे कमाल देखिए

उनको पता नहीं कि उनके पाँवों से
गर्द भी गुलाल हुई कमाल देखिए

समुद्र की लहरें भी उठती चली गईं
यूं चाँदनी बवाल हुई कमाल देखिए

 उनका जहाँ में ठिकाना नहीं रहा
हमको मिला मुकाम कमाल देखिए
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 8 मई 2017

मशाल देखिए

बरसात आई तो दरकने लगी ज़मीं
कैसा कहर है बरपा बारिश तो देखिए

कैसी जुम्बिश हुई है जिस्म में मेरे
इस परकटे परिंदे की कोशिश देखिए

किसको पता था मर मिटेंगे तेरी अदा  पे
कैसे उठा हाथ चला तेरी अलकों पे देखिए

मेरी जुबान से निकली तो नज़्म बनी
तुम्हारे हाथोँ में आई तो मशाल देखिए
@मीना गुलियानी 

रविवार, 7 मई 2017

कितने एतराज़ मै उठाता हूँ

मै तुम्हें भूलने की कोशिश में
खुद को  कितने करीब पाता हूँ

तू बनके रेल यूँ गुज़रती है
मै बना पुल सा थरथराता हूँ

तेरी आँखों में जब भी मै देखूँ
अपनी  राहों को भूल जाता हूँ

रौनके ज़न्नत न रास आई मुझे
जहन्नुम की खुशियाँ भी लुटाता हूँ

बहुत सोचता पर न कहता हूँ
कितने एतराज़ मै उठाता हूँ
@मीना गुलियानी


शनिवार, 6 मई 2017

काटो प्रपंच का मायाजाल

उठो नवयुवको थामो मशाल
आह्वान दे रहा महाकाल

कर्मवीर तुम धर्मवीर तुम
मत होना कभी अधीर तुम
तुम सिंहनी के सपूत हो
दो दुश्मन का वक्ष चीर तुम
प्रज्वलित  करो चेतना ज्वाल

संस्कारहीन हो रहा समाज
 शान्ति पथ दिखलाओ आज
भरो प्राणों में संकल्पशक्ति
करो नाश दुराचार का आज
काटो  प्रपंच का मायाजाल
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 5 मई 2017

करदो स्वयं समर्पण

जैसे साधक अपने गुरु को करता अपना सब कुछ अर्पण
 ऐसे ही तुम अपने देश के हित करदो सर्वस्व समर्पण

दीपक और  पतंगे को देखो
चातक और चंदा को देखो
गंगा की धारा को देखो
सबका अनन्य भाव से अर्पण

अर्जुन करे कान्हा से जैसे
राधा करे कृष्ण को जैसे
वंशी करे होंठों से जैसे
सुखद भाव से अर्पण

सीप और मोती के जैसे
शिशुओं का माता से जैसे
बूंदों का बादल को जैसे
होता है अस्तित्व समर्पण
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

न फिर लौटकर आएगा

वक्त कैसा भी हो वो गुज़र जाएगा
दिन में सूरज उगा शाम को ढल जाएगा

तू क्यों  मायूस होता है बशर
इक दिन अहमियत पे उतर आएगा

 फितरत बदली है फ़िज़ा ने अभी
ग़म  न कर पल ये भी निकल जाएगा

खौफ न कर हौंसला ज़रा तू रख
क़शमक़श में  उलझ मत पिछड़ जाएगा

आज़मा किस्मत खिला ये चमन
वक्त गुज़रा गर न फिर लौटकर आएगा
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

वाणी मूक न होने की

उठो मनुज  पुत्रो अब जागो घड़ी नहीं ये  सोने की
तुम पर टिकी हैं  निगाहें आशाओं के पूरे होने की

तुममें सृजन शक्ति है कण कण में  भण्डार भरा
जीवन को तुम पहचानो देश है किस  मोड़ खड़ा
मोड़ दो इसकी धारा तुम घड़ी नहीं ये खोने की

सबको इस संसार में केवल स्वार्थ नज़र ही आता है
कैसे सुखी बने ये मानव ध्यान नहीं ये आता है
तुममें है क्षमता जगाओ हिम्मत मानव होने की

कैसी दुष्प्रवृति की दलदल में फँसी है नूतन पीढ़ी
सुगम बनाओ प्रगति पथ बनाओ इक ऐसी सीढी
संस्कृति का इतिहास बदलो वाणी मूक न होने की
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

आंखे बंद करता हूँ

मै अनगिनत बातों को सोचता हूँ
शाम को तन्हाई में जब जिंदगी
खामोश महासागर सा सफर करती है
लाल गुलाबी  तन्हा रात की धुन तरह
खूबसूरत यादों के बीच नृत्य करती है
रौशनी की  जगमगाहट बज्म बनती है
नए सपनों में चुपचाप ढल जाती है
तब मेरे पाँव रेत में धंस जाते हैं
गीत बूंदें बनकर होले से बरसते हैं
लगता है कोई यति समाधि में लीन हो
खुद को भूलने के लिए आंखे बंद करता हूँ
@मीना गुलियानी  

सोमवार, 24 अप्रैल 2017

इबारत लिख न पायेगी

कभी जब गुजरोगे इस राह से तन्हाई में
ये राहें फिर से तुम्हें पुकारेंगी
गुलशन जो उजड़ गया ख़िज़ाओ से
ये बहारें फिर से उसे निखारेंगी

मन भटकेगा तेरा यूँ ही बादलों की तरह
ये घटायें तेरे गेसुओं को सँवारेंगीं
चाँद तारों ने लगाया हजूम सा जानिब
यादें तुझे रात भर जगायेंगी

यादें जब रह रह कर तड़पाएंगी
बिजलियाँ आशियाँ को जलाएंगी
सदमे से चौंककर न उठना तुम
स्याही भरी कलम इबारत लिख न पायेगी
@मीना गुलियानी 

जिंदगी मौत के करीब है

 यहाँ के नज़ारे कितने अजीब हैं
लगता है वक्त ही कमनसीब है

जिंदगी यहाँ  की कितनी  वीरान है
आती जाती साँसे कितनी ज़रीब हैं

मिलने जुलने के सिलसिले भी खत्म हुए
रफीक थे जो कभी अब बने रकीब हैं

सारे आशियाने हमारे उजड़ से गए
लगता है जिंदगी मौत के करीब है
@मीना गुलियानी



शनिवार, 22 अप्रैल 2017

झारी भी सूनी पड़ी है

आज केसर की क्यारी सूनी पड़ी है

वो गौरेया कहीं खो सी गई है

ढफ ढोल की धमाधम सूनी पड़ी है

आमों की मंजरियाँ झर सी गई हैं

गाँव की हिरनिया कहीं खोई पड़ी है

दिखते नहीं कोई टेसू के फूल भी अब

गुजरिया भी रास्ता भूले खड़ी है

कैसे गाऊं मै अब फागुन के गीत

रंगों की झारी भी सूनी पड़ी है
@मीना गुलियानी 

जिंदगी मेरी उधार है कहीं

मुझसे तुम कुछ सवाल न करो
मेरे पास उनका कुछ जवाब  नहीं

मेरी सांस, धड़कन मेरी कहती है
जैसे कि ये जिंदगी अब मेरी नहीं

तुम्हारी खामोशी मुझ पर इक कर्ज है
तेरी बातों का मेरे पास जवाब नहीं

अजनबी शहर है खामोशी तन्हाई  है
कहने को जिंदगी मेरी उधार है कहीं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

मुक्त गगन में अब विचरना है

आज भी स्त्री अपनी यंत्रणा से लड़ती है
मन ही मन पिंजरे से उड़ना चाहती है
अनंत विस्तार को पाना चाहती है
लेकिन सैयाद से भी कुछ डरती है

उसने उसके पर नोच डाले हैं
पाँवों में बेड़ियाँ लब पे ताले हैं
गहरे समुद्र की बात करती है
चीख इक बवंडर सी उभरती है

एक शतरंज का मोहरा बना दिया उसने
उसकी चालें वो सब समझती है
मन छटपटाता है आज़ादी पाने को
दिल की तमन्नाओं में रंग भरती है

कुछ कर गुज़रने की चाहत में
दिमाग में कैंची सी चलती है
जाल काटने की चाहत में
अपनी हसरतों से रोज़ लड़ती है

दुर्गा काली का रूप धारण कर
अब उस जाल से निकलना है
सैयाद के मंसूबों को कुचलना है
मुक्त गगन में अब विचरना है
@मीना गुलियानी 

मुझको फिर से बहका रही है

एक आवाज़ उस पार से आ रही है
मुझको होले से कुछ समझा रही है

दिन बीता ,शब गई,,मुझको भी सोना है
तेरी तस्वीर गीत गुनगुनाए जा रही है

जिंदगी की नई राह चुन ली थी मैंने
क्यों पुराने एहसास जगाए जा रही है

सूरज ने भी चाँद से जाने क्या कह दिया
रोशनी मुझको फिर से बहका रही है
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

कजरारी आँखे सांझ धानी

मचल रहा लहरा के झील का पानी
लिखी मैंने खुली किताब में कहानी

मैंने तय किया सफर हवाओं जैसा
सुनाए  मौसम गुज़रे पल की कहानी

मेरी गली से गुज़री तुम आज ऐसे
जैसे किसी राजा की तुम हो रानी

पड़े थे कभी अमिया की डाली पे झूले
याद आई कजरारी आँखे सांझ धानी
@मीना गुलियानी 

फितरत बदली नहीं जाती

साँस लेना भी जैसे कोई जुर्म है
जिन्दगी ऐसे तो जी नहीँ जाती

एक ठहरा हुआ सफर बन चुका हूँ मै
यह सड़क अब कहीं भी नहीं जाती

ये चाँदनी मुझे रात भर जलाती है
जाने क्यों अपने घर नहीं जाती

तुझे याद करने की आदत सी बन गई
दिल की हसरत निकाली  नहीं जाती

मै दुआओं में तुझको ही हमेशा माँगू
चाहकर भी फितरत बदली नहीं जाती
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

दीप जलाएँ प्राण का

आओ मिलकर हाथ बढ़ाकर संदेश दें ज्ञान का
मिटाकर अन्धकार हम  दीप जलाएँ प्राण का

जब तक चले साँस जीवन में
दीपक यूँ जलता ही रहे
खिले न जब तक मन उपवन
संवेदना से ये  पलता ही रहे
आओ मिलकर सदभावों से
दीप बने मिटाने को अज्ञान का

हर प्राणी जो भटक रहे हैं
सही मार्ग पर लाएँ हम
अंधविश्वास आडंबर के काँटों से
उनको आज बचाएँ हम
जीवन के तम को मिटाकर
नया प्रकाश भरें सद्ज्ञान का
@मीना गुलियानी



मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

सबको गले लगाएँ हम

आओ दीप जलाएँ हम अन्धकार मिटाएँ हम
नवज्योतस्ना को  फैलाके  कितना हर्षाएँ हम

जगाएँ हम जागृति की क्रांति
दूर हो जाए विश्व की भ्रान्ति
ऐसा पथ बतलाएँ हम

भेदभाव सब  दूर करें हम
आत्मभाव से उसे भरें हम
कुरीतियाँ दूर भगाएँ हम

सज्जनता को हम अपनाएँ
दुर्जनता को दूर भगाएँ
सबको गले लगाएँ हम
@मीना गुलियानी


शनिवार, 8 अप्रैल 2017

विश्वास और प्रेम से रहना

मैंने सीखा है जीवन से हर पल ही हँसते रहना
चाहे कितने दुःख आएँ चुपचाप ही सहते रहना

न जान पायेगा कोई ,है कितनी मन में पीड़ा
हँसते हुए इस  जीवन में ,करती है चिंता क्रीड़ा

मेरी आँखों में तो हरदम, प्यासा सागर लहराए
जो भेद छुपे मेरे मन में, कैसे कोई बतलाये

मेरे जीवन में आशा आलोकित हर पल रहती
मेरे असफल होने पर भी कभी न तिरोहित होती

मेरे साथी से मुझको मिलता उल्लास का गहना
मैंने पीड़ा से सीखा विश्वास और प्रेम से रहना 
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

माता की भेंट --10

तर्ज़ ----पिछवाड़े बुड्ढा खांसदा 

खोलो ज़रा भवना दा द्वार    ------ माँ 
-जय अम्बे जय अम्बे दीवाने तेरे बोलदे 

तेरियां उडीकां विच अखाँ गइयाँ पक माँ 
कदे ता दयाल होके बच्यां नूँ तक माँ 
करदे हाँ असी इन्तज़ार ---माँ ---जय अम्बे 

बच्यां तों दस ज़रा होया की कसूर माँ 
नोहां नालों मॉस अज होया किवें दूर माँ 
बागाँ कोलों रुसी ऐ बहार ---माँ ---जय अम्बे 

मावां बिना पुत्रां नूँ कोई वी न झलदा 
ताइयों ता जहान सारा बुआ तेरा मलदा 
लावें तू डुबदे नूँ पार ----माँ -----जय अम्बे 

भगतां ने रखियाँ माँ तेरे उते डोरियां 
तकदे ने जिवें तके चन नूँ चकोरियॉ 
दर खड़े पलड़ा पसार --माँ------जय अम्बे 
@मीना गुलियानी 


सोमवार, 3 अप्रैल 2017

माता की भेंट ---9

तर्ज़ ------रमैया वस्ता वैया 

नाम जब तेरा लिया ध्यान जब तेरा किया 
तूने दुःख दूर किया 

जग  ने तो माँ ठुकराया मुझे 
तूने ही तो माँ अपनाया मुझे 
दुनिया ने तो भरमाया मुझे 
तूने ही माँ सबसे छुड़ाया मुझे 
दिल तुझे याद करे ,माँ फरियाद करे --------तूने दुःख 

मोह के जाल में फँसके जंजाल में 
घबराके माता पुकारा तुझे 
दिल मेरा माता पुकारे तुझे 
तेरे बिन कौन पार उतारे मुझे 
जाना न दूर कहीँ ,छोड़के मुझको कहीँ -------तूने दुःख 

तेरी कृपा का सहारा मिला 
डूबती नैया को किनारा मिला 
तुझसे दया की जो भीख मिली 
माँ अंधे को जैसे तारा मिला 
कैसे मैं दूर रहूँ ,क्यों मैं गम को सहूँ----------तूने दुःख 

रविवार, 2 अप्रैल 2017

माता की भेंट --8

तर्ज़ --ऐ रात के मुसाफिर चन्दा ज़रा बता दे 

हे अम्बिके भवानी दर्शन मुझे दिखाओ 
अन्धकार ने है घेरा ज्योति मुझे दिखाओ 

मैया तेरे ही दर का मुझको तो इक सहारा 
नैया भँवर में डोले सूझे नहीँ किनारा 
मंझधार से निकालो नैया मेरी बचाओ 

लाखों को तूने तारा भव पार है उतारा 
 बतलाओ मेरी माता मुझको है क्यों बिसारा 
बच्चा तेरा हूँ माता मुझको गले लगाओ 

सूनी हैं मेरी राहें आँसू भरी निगाहें 
बोझिल हैं मेरी साँसे दुःख कैसे हम सुनाएं 
गम आज सारे  मेरे मैया तुम्हीं मिटाओ 

तेरा नाम सुनके आया जग का हूँ माँ सताया 
मुझको गले लगालो तेरी शरण हूँ आया 
रास्ते विकट हैं मैया अज्ञान को मिटाओ 
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

माता की भेंट --7

तर्ज --तुझे सूरज कहूँ या चन्दा

मेरी मैया मेरा तुझ बिन दूजा न और सहारा
मेरी नाव भँवर में डोले माँ सूझे नहीँ किनारा

तुम आके पर लगाओ माँ आप ही जान बचाओ
,मुझे पार  करो इस भव से नैया को पार लगाओ
माँ तेरे भरोसे पर ही मैंने जीवन को है गुज़ारा

माँ मैंने यही सुना है तू विपदाओं को मिटाती
माँ सबके दुखड़े हरके रोतों को तू है हँसाती
मेरी भी विनती सुन लो इस जग से मैं तो हारा

तुम अर्ज सुनो माँ मेरी सुनलो मत करना देरी
माँ शेर सवारी करके रखना तू लाज मेरी
तेरा ही सहारा लेकर माँ छोड़ दिया जग सारा
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 31 मार्च 2017

माता की भेंट --6

तर्ज़ ----दिल का खिलौना हाय टूट गया 

अम्बे का सहारा मैंने पा ही लिया 
दाती ने चरणों से लगा ही लिया 

जग ने मुझे था जब ठुकराया 
माँ ने ही अपने गले से लगाया 
मेरा उद्धार करके मुझसे प्यार करके 
माता ने मुझको अपना बनाया 
सच्चा सहारा मैंने पा ही लिया 

मैं अन्धकार में था मुझे रोशनी  दी 
मिटाके गमो को मेरे नई ज़िन्दगी दी 
दूर अँधेरा हुआ दिल में उजाला हुआ 
चमकाई किस्मत मेरी मुझे चाँदनी दी 
नाम की भँवर से बचा ही लिया 
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 30 मार्च 2017

माता की भेंट --5

तर्ज़ ---रहा गर्दिशों में हरदम 

मेरी मात आओ तुम बिन मेरा नहीँ सहारा 
नैया भँवर में डोले सूझे नहीँ किनारा 

आ जाओ मेरी मैया आकर मुझे बचालो 
डूबे न मेरी किश्ती करदो ज़रा इशारा 

तेरे सिवा जहाँ में कोई नहीँ है मेरा 
आओ न देर करना तेरा ही है सहारा 

क्यों देर माँ करी है मुश्किल में जां मेरी है 
विपदा को आज हरलो दे दो मुझे सहारा 

अब देर न लगाना मेरी मात जल्दी आना 
मुझको भी तार दे माँ लाखों को तूने तारा 
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 29 मार्च 2017

माता की भेंट -- 4

तर्ज़ ------छुप गया कोई रे 

जगदम्बे शेरां वाली बिगड़ी सँवार दे         
नैया भँवर में मेरी सागर से तार दे 

मैं अज्ञानी मैया कुछ भी न जानू 
दुनिया के झूठे नाते अपना मैं मानू 
आके बचालो नैया भव से उबार दे 

लाखों की तूने मैया बिगड़ी बनाई 
फिर क्यों हुई है मैया मेरी रुसवाई 
लाज बचाले माता दुखड़े निवार दे 

जपूँ तेरा नाम मैया ऐसा मुझे ज्ञान दे
नाम न तेरा भूलूँ ऐसा वरदान दे 
आशा की जोत मेरे दिल में उतार दे 
@मीना गुलियानी 

माता की भेंट

तर्ज़ ------दिल तोड़ने वाले तुझे दिल 


मेरी मात आ जाओ तुझे दिल ढूँढ रहा है 
मुझे दर्श दिखा जाओ तुझे दिल ढूँढ रहा है 

तुम आओ तो ऐ माँ मेरी किस्मत बदल जाए 
बिगड़ी हुई तकदीर माँ फिर से सँवर जाए 
कबसे खड़ा हूँ  मैं तेरी उम्मीद लगाए  तुझे दिल ढूँढ रहा है 

इस दुनिया ने ऐ माँ मेरा सुख चैन है छीना 
मुश्किल हुआ है आज तो बिन दरश के जीना 
आवाज़ दे मुझको माँ अपने पास बुला ले  तुझे दिल ढूँढ रहा है 

रो रो के मैया आँखे भी मेरी देती हैं दुहाई 
सुनो मेरी विपदा मैया जी करलो सुनाई 
अब जाऊँ कहाँ तुम बिन कहाँ और ठिकां है  तुझे दिल ढूँढ रहा है  
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 27 मार्च 2017

माता की भेंट

तर्ज़ -------रुक जा

दस जा ओ राही जान वालया
मैया दा द्वारा सानू दस जा
दस जा  ओ पंथ किनी दूर ऐ
भवन न्यारा सानू दस जा

मैया दे द्वारे दी ऐ होई निशानी ऐ
उत्थे जगमग जग रही ऐ इक जोत नुरानी ऐ -----------दस जा

 ऐ उच्चे पर्वत ते मैया दा द्वारा ऐ
माँ शेरां वाली दा भक्तां नूँ सहारा ऐ -------------------दस जा

निश्चा कर आवे जो न जांदा खाली ऐ
माँ दुर्गा शक्ति दा सारा जगत सवाली ऐ -------------दस जा
@मीना गुलियानी 

माता की भेंट

तर्ज़ -------रेशमी सलवार कुरता जाली दा

जगमग जगदियां जोतां समा दिवाली दा
मन्दिर अजब रंगीला शेरां वाली दा
भगतां नूँ है आसरा माँ रखवाली दा
तेज न झल्या जाए जोतां वाली दा

माता दी शेर  सवारी है लगदी बहुत प्यारी
भगतां नूँ चा ऐ चढ़या दर्शन दा दिल विच भारी
नाम दी लाली दा ------------------------मन्दिर

 माता दी शक्ति न्यारी ते तेज न झल्या जावे
भगतां नूँ माता तारे दुष्टां नूँ मार मुकावे
खण्डा काली दा ------------------------मन्दिर

विरला कोई भगत प्रेमी विच नाम दे चोला रंगदा
सदा खिला रहे ऐ गुलशन तेरा सेवक वर मंगदा
धर्म दी डाली दा ------------------------मन्दिर

जगजननी ते दुःख हरनी दुखियाँ दे दुखड़े हरदी
तेरी देख निराली शक्ति सब दुनिया सजदा करदी
पहाड़ां वाली दा ------------------------मन्दिर
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 24 मार्च 2017

भूला अफसाना याद आया

आज फिर कोई भूला अफसाना याद आया
मौसम जो गुज़रा दिन सुहाना याद आया

बीते सावन के दिन जब झूले पड़े थे बागों में
गीतों भर वो दिन तेरा मुस्कुराना याद आया

वो कलियों का खिलना वो हँसना वो मिलना
नज़रों का झुकाना बिजली गिराना याद आया

सुबकती सी आँखे महकती कम्पकंपाती साँसे
दबे पाँवों चलकर ज़मी को खुरचना याद आया
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 22 मार्च 2017

आँसुओं में डूब न जाऊँ कहीँ

मुझे खुद पे ऐतबार है लेकिन
ये ज़ुबाँ फिसल न जाए कहीँ

तुम रहो हमेशा  हमारे ही आस पास
नज़र नवाज़ नजारे बदल न जाए कहीँ

तमाम उम्र अकेले सफर किया हमने
साथ पाके  आदत बदल न जाए कहीँ

तुम्हारे ख़्वाब कभी शोला हुआ करते थे
देखो कहीँ वो कमज़ोर पड़ न जाए कहीँ

 एहसास से लबालब भरा हुआ हूँ
तेरे आँसुओं में डूब न जाऊँ कहीँ
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 21 मार्च 2017

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प्रिय   पाठकगण


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रविवार, 19 मार्च 2017

नश्तर दिल में उतर जाएगा

मेरे दिल के ज़ख़्म अभी हरे हैं अभी
मत कुरेदो उन्हें लहू निकल आएगा

दिल क्या उबर पायेगा गमों से कभी
आशियाँ उजड़ा क्या वो बस पायेगा

मैंने अक्सर तलाशा बीते लम्हों को
वैसा नक्श क्या फिर उभर पायेगा

भर गया दिल मेरा तेरी बेरुखी देखकर
याद करके नश्तर दिल में उतर जाएगा
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 16 मार्च 2017

स्वच्छन्द उन्मुक्त सा आकाश

मेरा मन भी तलाशता रहता है

स्वच्छन्द उन्मुक्त सा आकाश

जिसमें सुबह सवेरे सूरज करे प्रकाश

शाम को पंछी घरौंदे में करें निवास

बच्चों की किलकारियों से गूँजे आकाश

दें वो भी अपनी उमंगों का आभास

प्रमुदित मन डोले आंगन में हर प्रभात

सन्ध्या में ईश्वर वन्दन का करें अभ्यास

हर चीज़ हो व्यवस्थित मन को भाये बात

स्वागत हो सद्व्यवहार से अपनत्व के साथ
@ मीना गुलियानी 

मुहब्बत से बसर होता है

रोज़ जब मेरा जब अँधेरे में सफर होता है
लगता है यातना का गहरा असर होता है

कभी सर पे कभी पाँव में कभी सीने में
कैसे बतायें कि कहाँ कहाँ पे दर्द होता है

दिल चाहता है  उड़कर पहुँचे आशियाने में
क्या करें हमारे पास में टूटा पंख होता है

रहने के लिए मिट्टी का घरौंदा काफ़ी है
दिल में बेपनाह मुहब्बत से बसर होता है
@ मीना गुलियानी 

मंगलवार, 14 मार्च 2017

ऐसी नज़र होगी ही नहीँ

इन अंधेरों में तुम यूँ न भटका करो
यहाँ की आबोहवा इतनी हसीन नहीँ

तुम्हारे पाँव के नीचे देखो ज़मीन नहीँ
पर तुम्हें मेरी बात का यकीन ही नहीँ

अपनी कांपती अँगुलियों को सेंक लो
इससे बेहतर लपट मिलेगी न कहीँ

तुम मेरा साथ देना ग़वारा न भी करो
मुझे मालूम है तुमसे गुज़र होगी नहीँ

तुम्हारे दिल की हालत सिर्फ जानता हूँ मैं
हर किसी के पास ऐसी नज़र होगी ही नहीँ
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 11 मार्च 2017

हसरत गर उभरती हो

मेरी कल्पना में तुम झील सी लगती हो
मैं इक नाव बनता हूँ तुम उसमें तरती हो

तुमको यूँ ही ज़रा सा भी मैं  छू लूँ तो
लगता है जैसे पत्तों से ओस गिरती हो

तुम तो अक्सर खुद ऐसे ही सिहर जाती हो
 जैसे बन्दूक के गोली से चिड़िया डरती हो

दिल के दरवाजो को कभी तो खुला रखो
करें क्या दीद की हसरत गर  उभरती हो
@मीना गुलियानी

तुम्हारा दिल बहलाने आयेंगे

मेरे ये गीत तुम्हारा दिल बहलाने आयेंगे
मेरे बाद तुम्हें मेरी याद भी ये दिलायेंगे

अभी तो थोड़ी आंच बाकी है न छेड़ो राख को
कोई तो चिंगारी फिर सुलगाने को आयेंगे

अभी तो तपती धूप  है और पथ सुनसान है
आगे बढोगे तुम तो फिर मौसम सुहाने आएंगे

कितनी बिसरी यादों के मंजर अधूरे रह गए
लोग अपने ग़मो को भुलाने यहॉ पर आयेंगे
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 7 मार्च 2017

आँसुओं से तेरा नाम जुड़ गया

शायद इन खण्डहरों में होंगीं तेरी सिसकियाँ मौजूद
मेरा पाँव न जाने क्यों जाते जाते इस ओर मुड़ गया

अपने घर से चला था मैं तो सुकून की तलाश में
न जाने क्या अपशकुन हुआ बरगद उखड़ गया

दुःख को तो बहुत छुपाया रखा था सबसे दूर
सुख जाने कैसे बन्द डिबिया से भी उड़ गया

कितने सपने सजाके चले थे सफर पे साथ हम
आया हवा का तेज़ झोंका वो  मेला उजड़ गया

तमाम उम्र भी हमने जिक्र न किया था किसी से
आखिरी वक्त पे आँसुओं से तेरा नाम जुड़ गया
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 6 मार्च 2017

फिर से रोशनी तो कीजिये

इन हवाओं में फिर लपट सी आने लगी है
कुछ ठण्डे पानी के छींटे इन पर दीजिये

तुमको भी याद कर लेंगे इस बहाने से हम
दो चार पत्थर ज़रा इधर फेंक तो दीजिये

जीना मरना तो यहाँ लगता ही रहेगा
कुछ घड़ी आराम से ज़रा जी तो लीजिये

ये पेड़ भी जुबाँ रखते हैं साजों की तरह
इनकी उदासी को ज़रा दूर तो कीजिये

जिनका जहाँ में कहीँ और ठिकाना न रहा
उनके दिलों में फिर से रोशनी तो कीजिये
@मीना गुलियानी 

रविवार, 5 मार्च 2017

तुमको भूलने लगा हूँ मैं अब

इतना दुःख मन में इकट्ठा हो गया
देख तुमको भूलने लगा हूँ मैं अब

कितनी चट्टानों से गुज़रा पाँव में छाले पड़े
सोचो कितनी तकलीफों से गुज़रा हूँ अब

मेरी जिंदगी का अब कोई मकसद नहीँ
इस इमारत में कोई गुम्बद नहीँ है अब

इस चमन को देखो सुनसान नज़र आये
एक भी पंछी शायद यहॉ नहीँ है अब

पहले तो  सब अपने से लगते थे यहॉ
दिलकश नज़ारे पराये लगने लगे अब

आज मेरा साथ दो मुझको यकीं है मगर
पत्थरों में चीख कारगर होगी न अब
@मीना गुलियानी


शनिवार, 4 मार्च 2017

सबसे था अनजाना

क्या कहें क्या सोचें अपनों ने नहीँ पहचाना
 जबकि साया था वो मेरा अब हुआ अनजाना

ये मेरा ही कसूर है  मिलता हर बात पे  ताना
जिंदगी के ताने बाने में बन्द हुआ आना जाना

कैसी हुई जिंदगी  इसे पहनाया इक खुशनुमा जामा
 कहें किससे क्यों पसन्द किया खुदगर्ज़ कहलाना

कोई बात नही किसी से नाराज़ नहीँ अब क्या पछताना
अपनों ने अनजाने में जख्म दिए मन को क्या बहलाना

किसी को भी नज़र आये न  दरार ऐसे छिपाया याराना
 सोचता हूँ कुछ कहता नही सच बोलने से लगा कतराना

रौनके जन्नत भी रास न आई मुझे जहन्नुम में था बेगाना
ये ज़मीन तप रही थी ये मकान तप रहे थे सबसे था अनजाना
@मीना गुलियानी


गुरुवार, 2 मार्च 2017

कान्हा तेरी मुरली बजी

कान्हा तेरी मुरली बजी धीरे धीरे
दिल में बजे सुर उतरे यमुना तीरे
चले आओ कान्हा इतना न सताओ
फिर से वो तान सुनाओ धीरे धीरे

जिसमें था खोया आज मेरा मन
भूली थी सुध बुध बावरा हुआ मन
छलकी मेरी गगरिया यमुना तीरे
सुनी तेरी मुरली जब धीरे धीरे

कहे तू कान्हा मोहे इतना सताये
करूँगी भरोसा कैसे समझ न आये
याद तेरी कान्हा हर पल रुलाये
सुनाओ बंसी की वो तान धीरे धीरे
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 1 मार्च 2017

सर झुकाना पड़ेगा

एक एहसास है जिंदगी प्यार उसमें जगाना पड़ेगा
चाहे सांसे थमने लगी हों गीत ये गुनगुनाना पड़ेगा

गम से बोझिल है ये दिल तो क्या
सामने गर कोई मुश्किल तो क्या
हँसके दूर करके सब उलझनों को
हमको उस पार जाना पड़ेगा

दरिया गहरा है मंझधार है
साथ टूटी सी पतवार है
रखके खुद पे भरोसा चला चल
ये कदम तो बढाना पड़ेगा

क्यों तू इतना यूँ हैरान है
बैठा क्यों तू परेशान है
जिंदगी उसके करदे हवाले
सजदे में सर झुकाना पड़ेगा
@मीना गुलियानी 

मेरे मन में थी समाई

उसने अपनी गर्मजोशी अपनी मुस्कान से दिखाई

अपनी सुंदर छवि  मेरे दिल में व्यवहार से बनाई

एक अनूठी सी छाप दिल में बनाई

मेरी कल्पना में वो  उतरती सी आई

मेरी कविता  के बोलों में वो आ समाई

मेरे दिल की धड़कनों में बजने लगी शहनाई

लिखता था गीत मैं वो गाने लगी रुबाई

तहरीर लिखी मैंने लिखावट थी उसकी आई

दिलकश थे सब नज़ारे इक घटा सी छाई

 लगा धरती पे इक चन्द्रकिरण उतर आई

अपनी  सितारोँ की ओढ़नी उसने झिलमिलाई

उसकी रौशनी में मेरी काया यूँ जगमगाई

संगेमरमरी बदन से चिलमन उसने उठाई

उसकी वो हर अदा  मेरे मन में थी समाई
@ मीना गुलियानी


सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

कान्हा तेरा मेरा ये प्यार

कान्हा तेरा मेरा ये प्यार कभी न बदले

तेरे दर पे हमेशा मैं आता रहूँ
तेरे चरणों में शीश झुकाता रहूँ
कान्हा मेरा ये व्यवहार कभी न बदले

चाहे अपना हो चाहे कोई बेगाना
रूठे तो रूठे मुझसे सारा ज़माना
कान्हा मेरा ये विचार कभी न  बदले

 सत्संग में सदा तेरे आता रहूँ
 भजन सदा मैं तेरे यूँ गाता रहूँ
जुड़े मन से मन के तार कभी न बदले
@मीना गुलियानी 

रविवार, 26 फ़रवरी 2017

इतना पन्ना लिखवाके लाया

तपती दुपहरी में वो जर्जर काया

लाठी टेकता वो मुझे नज़र आया

झुर्रियों का बोझ भी झेल न पाया

इतनी अधिक  क्षीण थी उसकी काया

विधाता ने जीवन का मोह उपजाया

मोम के पुतले सी पिघलती काया

न थी एक भी तरु की वहाँ छाया

प्राणों का मात्र स्पन्दन ही हो पाया

पल में मिट्टी में  विलीन हुई वो काया

चार व्यक्तियों ने उसे काँधे पे उठाया

निष्प्राण जीव ने चिरविश्राम था पाया

जीवन का इतना पन्ना लिखवाके लाया
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

उसे प्रेम का पाठ पढ़ाया

एक हवा का झोंका चुपके से आया
आते ही उसने फूलों को सहलाया
खुशबु से अपनी गुलशन को महकाया
धीरे से उसने जुल्फों को बिखराया
कंधे पे रखकर हाथ वो था मुस्कुराया
दिल के करीब ही खिंचा चला आया
मौसम ने फिर से जीना है सिखाया
लगता है जैसे कोई त्यौहार आया
लगता है कान्हा ने बाँसुरी को बजाया
गोपीवृन्द भी संग संग चले जैसे छाया
राधा का कान्हा ने मन को हुलसाया
नदिया किनारे कदम्ब की वो छाया
कान्हा ने वहीँ उसके नीचे रास रचाया
कालिन्दी की धारा ने सब याद दिलाया
गोपियों ने विरह जल था उसमें बहाया
अश्रुजल से काली पड़ी कालिन्दी की काया
कान्हा का सा ही रूप उसने था लखाया
जिसने उद्धव का मान भी खण्डित कराया
जो ज्ञान का सन्देश देने को था आया
गोपियों ने ही उल्टा उसे प्रेम का पाठ पढ़ाया
@मीना गुलियानी 

जिस्म मिट्टी बन गया है

अब कौन धैर्य दे मेरे दिल को

जिसका पूरा इतिहास जल गया है

मुझसे मेरा बचपन रूठ गया है

मन का ये आँगन सूना पड़ गया है

ज़माने की इन फ़िक्रों ने खा लिया है

कैसे सब्र करे जिसका दिल टूट गया है

घर का तिनका तिनका बिखर गया है

आस का पत्ता पत्ता पेड़ से झड़ गया है

कल का फूला गुलशन उजड़ गया है

मिट्टी में मिलके जिस्म मिट्टी बन गया है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

कान्हा राधा पुकारे आज

कान्हा राधा पुकारे आज, प्यारे आ जाओ इक बार
कान्हा आ जाओ न ठुकराओ,मेरी नैया लगादो पार

कान्हा तूने मुझे बिसराया है
ये कैसी तुम्हारी माया है
नित बहती है अँसुअन धार

जब याद तेरी मुझे आती है
तन मन की सुध बिसराती है
तुझपे तन मन दूँ मैं वार

कान्हा बिछुड़े हुए युग बीत गए
क्यों मीत  मेरे तुम रूठ गए
अब सपने करो साकार
@मीना गुलियानी 

बेचैनी दिल में उभरती है

तेरी तस्वीर भी आजकल मुझसे बात नहीँ करती है
वो भी चुपचाप कमरे में एक ओऱ तकती रहती है
जाने क्या बात है क्यों उदासी सी छाई रहती है
एक उलझन सी है जो ख्यालों में तेरे रहती है

हम तो तेरे ही साये में जीते हैं सँवरते हैं
फिर भी इक ठेस सी जहन में उतरती है
हम तेरे  मलाल  का सबब ढूँढते रहते हैं
 क्यों फिर इक मायूसी दिल में भरती है

तुम यकायक क्यों चले जाते हो  बिना बताये हुए
एक हसरत सी दिल में हमेशा मेरे उमड़ती है
यूँ तो लम्हे गुज़रते जाते हैं तेरे बगैर जीते हैं
 फिर भी तन्हाई की बेचैनी दिल में उभरती है
@मीना गुलियानी


मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

जिंदगी तेरे एहसास में डूबी थी

तुम्हारी याद के पल कितने सुहाने थे
हवा भी गीत गुनगुनाती थी
तेरे इंतज़ार में लोरियाँ सुनाती थी
मेरे तड़पते हुए दिल को बहलाती थी
धूप मेरे आँगन में खिल जाती थी
तुम मेरे बाज़ुओ में सिमट जाती थी
चारों दिशाओं में तुम्हारी हँसी गूँजती थी
जिन्दगी तुम्हारे प्यार पर फ़िदा होती थी
तुम्हारी लरज़ती चाल याद आती थी
तब मेरी रूह भी कांप जाती थी
तुम्हारे बालों से पराग केसर झड़ते थे
जो तुम्हारे नाज़ुक कपोलों को चूमते थे
अंगुलियाँ बालों में तुम लपेटे थी
जिसमें सारा जहाँ तुम समेटे थी
जिस्म मोम सा सांचे में ढला था
मेरी जिंदगी तेरे एहसास में डूबी थी
@मीना गुलियानी 

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

मेरे सपनों का गाँव हो

मेरे अन्तर की पीड़ा को तुम क्या जान पाओगे
मेरे भावों की व्याकुलता को तुम क्या समझ पाओगे
मेरे जिस्म के अंदर एक भावुक मन भी है
जो नहीँ रहना चाहता किसी के भी पराधीन
इन सभी सम्बन्धों से ऊपर उठकर चाहता है जीना
वो जिंदगी जो कि शायद दुश्वार लगेगी तुमको
एक एहसास हमेशा मुझे कचोटता है क्या यही जीवन है
सुबह से शाम, शाम से रात, रात से फिर दिन
एक ही कल्पना, यही समरूपता , न भावों का स्पंदन
 वही आशा, वितृष्णा  भरी जिंदगी क्या जीना
जहाँ न शब्दों की है कोई परिभाषा ,सिर्फ निराशा
मैं चाहती हूँ एक नया  संसार यहाँ बसा दूँ
हर तरफ खुले आकाश का शामियाना हो
चाँद तारों को उसमें सजा दूँ ,दीपक सजा दूँ
जहाँ बादलों का झुरमुट अठखेलियाँ करता हो
लहरों भर समंदर सा मन मचलता हो
नए नए उद्गार मन में पनपते हों
नए नए पत्तों से गान हवा से झरते हों
कोयलिया जहाँ मीठे बोल सुनाती हो
तितली जहाँ पँख फैलाती उड़ती इतराती हो
वेदना का जहाँ नामोनिशान  न हो
वहीँ पर बसा मेरे सपनों का गाँव हो
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

ऐसा मकां बनाया जाए

ऐसा कब्रिस्तान कहाँ है जहाँ नफरतों को दफनाया जाए
ईर्ष्या ,द्वेष ,वैर  भाव को हर दिल से कैसे मिटाया जाए

                          हर कोई कुदरत के तमाशे पे ही नाचते रहते हैं
                          तन्हाई की महफ़िल ख़ामोशी के घुंघरू बजते हैं
                          कैसे इस बेचैनी को हर मन से अब हटाया जाए

वैसे तो जीने को तो हम यूँ भी जिए जाते हैं
बन्द कर होठों को अश्कों को  पिए जाते हैं
लम्हे जो गुज़रे नफरतों में कैसे भुलाया जाए

                       कभी तो कोई दिन ऐसा आये जो सुकूँ से भरा हो
                       कोई तो दिल मिले ऐसा जो मुहब्बत से भरा हों
                        सुकूँ  दिल को मिले कोई ऐसा मकां बनाया जाए
@मीना गुलियानी 

रविवार, 12 फ़रवरी 2017

स्वप्न फिर बुनने लगी

सुना है  डूबते को तिनके का सहारा काफी है
फिर से नए ख़्वाब ये जिंदगी बुनने लगी
हरी हरी घास ने दे दी है अपनी कोमलता
फूलों की पत्तियों ने लुटा दी अपनी सुंदरता
उनका मकरन्द भी चुराया पवन ने भँवरों ने
उसको अपने गीतों में चुपचाप मैं सँजोने लगी
मधुर सपने जो देखे आँखों ने मैं उनमें खोने लगी
मन  स्वच्छन्द सा उडा  जाता है हवा के झोंके से
दिल की तरंग मृदंग की थाप सी बजने लगी
पृथ्वी का स्पर्श मेरे अन्तर्मन को फिर छू गया
प्रकृति के इस आँगन में सृजन उत्सव भर गया
मेरी पलकें सृजन के स्वप्न फिर बुनने लगी
उन सुखद पलों के एहसास बन्द आँखे करने लगी
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

मीठे बोल मुँह से बोल तो ज़रा

तुझको निहारने से कभी मन नहीँ भरा
तुम ही मुझे बताओ ये क्या है माज़रा

क्यों आ गईं माथे पे तुम्हारे सिलवटें
क्यों हर बात पे सोचते बतलाओ ज़रा

शोहरत तो तुम्हारे कदम चूमेगी मगर
तुम अभी से न इतना इतराओ तो ज़रा

यूँ तो बगिया ये सारी वीरान ही पड़ी है
दिल का ये चमन है फिर भी हरा भरा

तन्हा ज़िन्दगी का सफर काटे नहीँ कटता
कुछ मीठे मीठे बोल मुँह से बोल तो ज़रा
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

ऊपर खुला आसमान है

यह सड़क हर तरफ से ही सुनसान है
आदमी मगर यहाँ का बड़ा सावधान है

हम फिसल गए तो फिसलते चले गए
सोचा न था कि इस मोड़ पर ढलान है

कभी तो हँस दो खुलके बात करो हमसे
वरना कहेगा कोई तू कितना बेज़ुबान है

इतनी मसरूफियत भी अच्छी नहीँ लगती
सभी अपने अपने हालातों से परेशान हैं

हम उस जगह पर हैं जहाँ अपनी खबर नहीँ
चल रहे हैं ज़मी पर ऊपर खुला आसमान है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

अंगारों को फिर कैसे हम बुझाएंगे

मेरे दिल के जख्म कुछ हरे से हैं
न कुरेदो उन्हें रिसने लग जायेंगे
गमों से इतने मुझे पाले हैं पड़े
लगता है छाले वो सारे फूट जायेंगे

                       टूटते रिश्तों में भी मौजूदगी का एहसास है
                       दिल की टीस न कम होगी अरमां रह जायेंगे
                       भावनाओं का सैलाब है आँसू ढलक जाएंगे
                       सिसकते हुए अरमान लिए तेरी गली आएंगे

सीपी में बन्द अरमानों को किया हमने
नज़ारे को भी हम सामने तेरे लेके आएंगे
दिल पे जब तिश्नगी की चोट लगी
जलते अंगारों को फिर कैसे हम बुझाएंगे
@मीना गुलियानी 

मेरा सपना अधूरा ही रहा

कल का मेरा सपना अधूरा ही रहा
तू मुझसे रूठा रूठा सा ही रहा

               मेरा दिल तुझसे मिलने को तरसता रहा
               आसमाँ पर चाँद खिला पर सिमटा रहा

सितारों पर भी बादलों का पहरा सा रहा
कुहरा आसमान पे यूँ  बिखरा सा ही रहा

              वक्त तेरे आने की आहट को सुनता ही रहा
              खुशियों से भरा दामन सिकुड़ता सा ही रहा

आईना मेरी मुस्कुराहट देखने को तरसता रहा
तेरे बिना मोती कुंदन हीरा सब फीका सा रहा
@मीना गुलियानी